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सं० १९६७ का चातुर्मास कालु० का काम और न रहा निहार का झगड़ा। एक ही मकान में कपाट बन्द कर के लगातार अपने इष्ट का जप करने में तत्पर हो गये । धर्म का फल तत्काल ही मिलता है, चाहिये सच्चे दिल की लग्न । हमारे चरित्रनायकजी की वेदना तीन दिन में चोरों की भांति पलायमान हो गई। तीन उपवास का पारणा हाथों से लाकर किया, फिर वहाँ के श्रावकों के अाग्रह से सात दिन वहाँ ठहर गये, ताकि नेत्रों की ज्योति ठीक हो जाय । दिन को तो लोगों को अवकारा कम मिलता था, किन्तु रात्रि में जैन-जैनेन्तर काफी तादाद में एकत्रित हो जाते थे। आप हमेशा धर्मोपदेश दिया करते थे, यहाँ के लोगों पर आपके व्याख्यान का काफी असर पड़ा। यहाँ तक कि जैनेतर क्षत्रियों ने तो मांस मदिरा शिकागदि का त्याग कर दिया। वे आज तक भी आपको याद करते हैं। ____ जिस समय आप सीयाट में विराजते थे, उस समय आग्ने पूज्यजी का ब्यावर अजमेर की तरफ पधारना सुना अतः पूज्यजीके पास जाने की इच्छा से आपने विहार किया, रास्ते में कालु आया; वहाँ केवलचन्दजी स्वामी अपने शिष्यों के साथ बिराजते थे । एक तो अपनी समुदाय के साधुत्रों की निर्दयता पर घृणा हो रही थी और दूसरे केवलचन्दजी से पूर्व का परिचय था, अतएव केवलचन्दजी के पास थोड़े दिन के लिये ठहर गये । केवलचन्दजी के पास रतनलालजी, सिरेमलजी, रूपचन्दजी, वगैरह साधु और कई साध्वियें जो ज्ञान पढ़ने की इच्छा करते थे, किन्तु उनमें कोई भी लिखा पढ़ा साधु नहीं था । इधर आपका पधारना हो गया, उन लोगों ने प्रार्थना की कि आप कुछ