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________________ भीनासर में पूज्यजी महाराज के दर्शन नायकजी ने सोचा कि धोवण पानी लाने को कह रहे हैं, तो क्या पूज्यजी अपना लाया हुआ धोवरण मुझे नहीं पिलावेंगे ? पर अलग धोवण लाकर तो मुझे भी नहीं पीना चाहिये, इसलिए आपने कह दिया कि मैं तो आज चौबिहार उपवास कर लूँगा । पूज्यजी महाराज भी समझ गये कि यह अलग आहार पानी करना नहीं चाहता है, खैर । सब साधुओं के आहार पानी कर लेने के बाद पूज्यजी ने हमारे चरित्र नायकजी को एकान्त में बुला कर, जालिया ग्राम से अकेले मन्नालालजी के पास गये और वहाँ से भीनासर आये तब तक की आलोचना करवाई। मुनिजी ने साफ २ सब हाल कह दिया और पूज्यजी महाराज ने सब हाल सुनकर विचार किया कि गयवरचंजी बिल्कुल र्निदोष हैं और यह सत्य है कि मेरे लिए इनके हृदय में उच्चासन है, किन्तु व्यवहार शुद्धि के लिए थोड़ा बहुत तो प्रायश्चित् देना ही पड़ेगा । पूज्यजी - गयवरचंदजी, मैं जानता हूँ कि तुम बिल्कुल निर्दोष हो, किन्तु इतने दिन अकेले रहे, इसलिए कुछ प्रायश्चित् लेना पड़ेगा । गयवर०-- जी हाँ । हजूर ! जो आप श्राज्ञा दें, मुझे स्वीकार है । पूज्यजी - शास्त्रानुसार तुमको चातुर्मासिक प्रायश्चित् दिया जाता है । ८७ गयवर०- -आपके वचन तो मुझे स्वीकार हैं, किन्तु यह प्रायश्चित किस दोष का है? पूज्यजी - हाँ, तुम दोषी तो नहीं हो, किन्तु इतने दिन अकेले रहे इसलिए यह प्रायश्चित दिया जाता है, यदि तुमको प्रायश्चिंत नहीं दिया जावे तो कल कोई भी साधु इस प्रकार अकेला
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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