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________________ आदर्श-ज्ञान घराने के मुख्य श्रावक थे। आपके लघुभ्राता शोभालालजी ने युवावस्था में वृद्धिचन्दजी महाराज के पास दीक्षा भी ली थी। वे पूज्य श्रोलालजी के लघु गुरु भाई थे। आपका ज्ञानाभ्यास इतना था कि पूज्यजी के समुदाय में कोई भी साधु आपकी बराबरी नहीं कर सकता था। गेनमलजी ने एक दिन हमारे चरित्रनायकजी के पास आकर एकान्त में कहा कि इस समय आपके ज्ञानाभ्यास के दिन हैं, आपने खानदान को और सब ऋद्धि को छोड़ कर वैराग्य के साथ दीक्षा ली है, फिर समझ में नहीं आता, कि आप अकेले इस प्रकार क्यों फिर रहे हैं, आपने पिछला सब हाल कह कर कहा कि श्रावकजी, कर्मो की गति विचित्र हुश्रा करती है। ___ गेनमलजी ने कहा, महागज आप त्यागी, वैरागी और गुणो हैं, जिस साधु से आप मिलेंगे वह आपको अपने पास रखने की कोशिश करेगा, क्योंकि गुणीजन सर्वत्र पूजे जाते हैं, किन्तु मेरी तो यह सलाह है कि ठाकुर ठिकाने ही शोभा पाता है, अतः आपको पूज्यजी की सेवा में रह कर सर्व प्रकार की योग्यता प्राप्त करनी चाहिए, चाहें पूज्यजी महाराज आपको कितना ही कष्ट दें या किसी का भी शिष्य बना दें, पर श्राप को तो पूज्यजी महाराज की आज्ञा का ही पालन करना चाहिए, इस में ही आपका कल्याण और शोभा है, पुनः मेरी तो यही राय है कि आप इस समय विहार कर सीधे हो पूज्यजी महाराज के पास पहुँच जावें और मैं भी पज्यजी महाराज के पास आपके लिए समाचार पहुँचा दूंगा । कहिए, मैंने कहा जिसके विषय में आपका क्या भाव है ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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