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________________ आदर्श-ज्ञान ७८ हित चाह रहे होंगे; इत्यादि, विचार कर किस्तूरचंदजी को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि मैं न तो मन्नालाल जी के पास रहूँगा और न इनके साथ पंजाब ही जाऊँगा । मैं पूज्यजी महाराज की आज्ञाओं को ही शिरोधार्य करूँगा; श्राप खुशी से पूज्यजी महाराज को समाचार कहलवा दीजिए। जब एक मास व्यतीत हो गया, तो मन्नालालजी ने कहा कि गयवरचंदजी हम लोग पंजाब में जावेंगे; तुम भी हमारे साथ चलो। गयवरचंदजी-मैं आपके साथ पंजाब नहीं चलूंगा । मन्नालालजी-क्यों ? गयवर०-आप पूज्यजी महाराज की निन्दा करते हो। मन्ना-क्या अब भी तुम पूज्यजी का पक्ष करते हो ? गयवरचंदजी-जी हाँ, पूज्यजी हमको कितना ही कष्ट देकर हमें कसौटी पर कसें, पर मैं पूज्यजी की निन्दा कभी नहीं सुन सकता हूँ। बस, मन्नालालजी ने हताश होकर पंजाब की ओर विहार कर दिया। इधर हमारे चरित्र नायकजी, पूज्यजी कि आज्ञा शिरोधार्य कर, किस्तूरचंदजी के पास रह गये। आपका दिल तो पूज्यजी की सेवा में जाने का था, किन्तु किस्तूरचंदजी टोंक माधौपुर जाने वाले थे; आपका भी मन हो गया कि नजदीक आ गये हैं, पूज्यजी की जन्म भूमि भी देखलें । इस इरादे से आपने किस्तूरचंदजी के साथ एक मास जयपुर में रहकर उनके साथ विहार कर दिया। जयपुर से 'छाड़सु' गये, वहाँ धोवन पानी बहुत कम मिला अतः एक खीवराज नामक साधु कुम्हार के यहाँ गया। कुंम्हारीन ने कहा कि यह कच्चा पानी है। परन्तु वह उसके मना करने पर भी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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