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आदर्श - ज्ञान
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तुमको हमारे साथ रहना है तो बीसलपुर जाकर आज्ञा - पत्र लिखा लाओ ।
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गयवर० - पूज्यजी महाराज ! मुझे अकेला जाने में लज्जा आती है; कृपा कर आप दो साधुत्रों को अवश्य भिजवादें ! पूज्यजी ने तोते वाली आँख बदल दी और कहा कि, बस तुमको कह दिया कि हमारा कोई साधु तुम्हारे साथ नहीं आवेगा; तुमको हमारे पास रहना है तो आज ही बिहार कर आज्ञा ले आओ, भंडारीजी ब्यावर में हैं, जाश्रो उनसे मिल लेना ।
गयवरचंद -- हताश होकर एक तरफ जाकर चिन्तातुर होकर बैठ गया । फिर विचार किया कि इस प्रकार चिंता करने से और चुपचाप बैठ जाने से क्या होने वाला है । किन्तु बिहार कर के बीसलपुर जाने के नाम पर आपके पैर पीछे पड़ जाते थे । श्रतः पूज्यजी महाराज से और भी नम्रतापूर्वक विनय की कि आपने रतलाम में मुझे किस प्रकार का विश्वास दिलाया था और आज यह बर्ताव क्यों किया जाता है, यदि मेरा कोई कसूर हुआ है तो आप माफ करावें, और कृपाकर दो साधु मेरे साथ भिजवा देवें ।
तब पूज्यजी ने सख्त नाराज होकर कह दिया कि यदि तुमको जाना है तो चले जाओ, वरना हमारे साथ नहीं रह सकोगे समझ गये न ?
गयवरचंद ने कहा पूज्यजी महाराज, मुझे यह उम्मेद नहीं थी, कि आप जैसे पूज्य पुरुष मुझे विश्वास देकर घर छुड़वा कर मेरे साथ इस प्रकार का वर्ताव करेंगे। परन्तु खैर, आपकी मरजी ।