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________________ १३ - साधुओं का माया जाल और भिक्षाचारी बीती हुई सब बातें भंडारीजी ने पूज्यजी महाराजको सुनादी, तब पुज्यजी महाराज हताश होकर कहने लगे कि भंडारीजो अपनी की हुई सब मेहनत मिट्टी में मिल गई, कारण गयवरचंद जी विवाह करने को जावें और उनका वैराग्य ज्यों का त्यों रहे यह कदापि संभव नहीं हो सकता है । अतः अब यह उपाय किया जाना चाहिए कि गयवरचंदजी अपने भाई के विवाह के समय वहाँ जा ही नहीं सकें, और साथ ही यह कार्य शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए | भंडारीजी ने कहा पूज्य महाराज ! आप ही बताइये ऐसा कौनसा उपाय है ? थोड़ी देर सोचकर पूज्यजी ने कहा कि बिना श्राज्ञा दीक्षा तो नहीं हो सकती है पर गयवरचंद के गृहस्थी के कपड़े उतरवा कर भिक्षाचारी करवा दी जांय तो विवाह में जाने से रुक सकते हैं ! भंडारीजी ने कहा- ठीक है, आज रात्रि में मैं गवरचंदजी को आपके पास ले आता हूँ, आप उपदेश दीजिए मैं भी कह दूँगा । चातुर्मास समाप्त हो जाने के बाद मगसर कृष्ण १ को साधुओं का विहार हो जाता है, पर गयवरचंदजी के दीक्षा की खटपट में पूज्यजी महाराज को शहर के बाहर ठहरना पड़ा । मगसर कृष्ण ९ को दिन की गाड़ी से गणेशमल व राजकुँवर बाई ग्वाना होगये । उसी दिन की रात्रि के ९ बजे भंडारीजी गयवरचंदजी को साथ ले कर पूज्यजी महाराज के पास आये वहाँ कुछ श्रावक बैठे थे, परन्तु कुछ संकेत करने पर वे सब चले गये ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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