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________________ गणेशमलजी का रतलाम भाना आशा की जा सकती है कि ये संसार में रह कर अपना साप देवेंगे ? ___इतने में २-४ श्रावक आये और गणेशमलजी एवं राजकुँवर को अपने मकान पर लेजाकर भोजन करवाया। तत्पश्चात् गणेशमलजी ने अपने ज्येष्ठ भ्राता से बहुत नम्रता पूर्वक विनय की कि यदि आपने दीक्षा लेने का निश्चय ही कर लिया है तो आपको कोई रोकने वाला नहीं है, किन्तु मेरी एक छोटी-सी प्रार्थना है जिसे आप सुनकर स्वीकार करके हमारे दुःखदग्ध-हृदयको शान्त करें। प्रार्थना इतनी ही है कि माघ मास में मेरा विवाह आपके हाथों से करके आप दीक्षा ले लीजिए। मैं बीसलपुर में यथा शक्ति दीक्षा का महोत्सव कर राजी-खुशी आपको दीक्षा दिलवा दूंगा, इस बात में रत्ती मात्र भी फर्क नहीं पड़ेगा, श्राप विश्वास रखें, तथा इसमें हम लोगों को संतोष भी हो जायगा। ___ गयवरचंदजी की इच्छा तो नहीं थी पर लघु बान्धव के कहने पर लिहाज आगई, और इस बात का वचन दे दिया कि खैर तुम इतना कहते हो तो मैं माघ मास में बोसलपुर आकर तुम्हारा विवाह करवा दूंगा, किन्तु-स्मरण रहे कि बाद में तुम मेरी दीक्षा में किसी प्रकार की भी बाधा नहीं डाल सकोगे। ___ गणेशमल अपने वृद्ध भ्राता के बचन पर विश्वास कर के तथा अपनी भोर से प्रतिज्ञा करके अपनी भावज को लेकर बीसलपुर की ओर चले गये; गयवरचंदजी रहे पूज्यजी की सेवा में ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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