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________________ आदर्श - ज्ञान २२ नायकजी सब कार्य में कुशल थे, वैसे ही श्रापी धर्मपत्नी राजकुंवर बाई भी महिलाओं के अनेक सद्गुणों से विभूषित थीं, और गृहकार्य करने में सर्व प्रकार से दक्ष थीं । यह बात किसी से भी छिपी हुई नहीं है कि जहां दुमाता होती है वहां थोड़ी बहुत खटपट हुआ ही क ती है और इसका मुख्य कारण स्त्री शिक्षा का अभाव है । यह बात पाठक पिछले प्रकरण में पढ़ चुके हैं कि मृताजी की पहली पत्नी रूपादेवी के दो पुत्र और दूसरी पत्नी के तीन पुत्र थे । जब गयवरचंदजी का विवाह हो गया, घर में दो स्त्रिएं हो गई, अब थोड़ी बहुत खटपट न हों तो फिर औरतों का अपठित रहने का फलही क्या हुआ ? दूसरे गयवरचन्दजी जैसे पैदास करने में कुशल थे वैसे जवानी में खर्च भी बहुत किया करते थे, जो पुराने समय के मूताजी की प्रकृति के बिलकुल प्रतिकूल था । अतः मुताजी ने इल गरज से गगवरचंद को घर से कुछ भी न देकर अलग कर दिया कि अब यह इतना खर्च कहां से करेगा, अर्थात् इसकी आंखें खुल जावेंगी और अक्ल दुरुस्त हो जावेगी । फिर भी गयवरचन्द अपने पिताजी का विनयवान सुपुत्र था और अलग होने के समय उसे घर से कुछ भी नहीं दिया, इतना ही क्यों अपितु दोनों के शरीर पर जो जेवर था वह भी माताजी ने उतार लिया यह विचार कर कि कहीं अधिक खर्ची न मिलने पर इस पर तो हाथ न पड़ जावे । गयवरचन्द को ऊँच नीच बहुत से अपने हिस्से का माल बटवा तुम्हारे सहायक हैं, पर हमारे चरित्र नायकजी ने उनको ऐसा मधुर एव मुंह तोड़ उत्तर दिया पर घर भंजक लोगों ने समझाया कि तुम अपने पिता सकते हो और इस बात में हम
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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