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________________ क्षेत्र देवता की स्तुति (स्त्रियों के लिए) 'खित्तदेवयाए 'करेमि 'काउ अन्नत्थ 'क्षेत्र देवता की आराधना निमित्ते मैं 'कायोत्सर्ग करता हूँ। 'जिसके 'क्षेत्र का 'आश्रय लेकर साधुओं 'यस्याः 'क्षेत्रं समाश्रित्य, 'साधुभिः साध्यते "क्रिया 'सा 'क्षेत्रदेवता "नित्यं, द्वारा की आराधना 'होती है, 'वह 'क्षेत्र देवता ह 10 " सदा "सुख देनेवाले हो || १ || "भूयान्नः' "सुखदायिनी ॥ १ ॥ (नोट : उपरोक्त दोनों स्तुति का प्रयोग त्रिस्तुतिक मत में नहीं होने से त्रिस्तुतिक वालों को कंठस्थ करने की आवश्यकता नहीं है। ) चउक्कसाय सूत्र भावार्थ : इस सूत्र में पार्श्वनाथ प्रभु की स्तवना की गई हैं। देवसिय प्रतिक्रमण के अंत में व संथारा पोरसी पढ़ाते समय इस सूत्र को चैत्यवंदन के रुप में बोला जाता है। 'चठक्कसाय 'पडिमल्लुल्लूरणु, 'दुज्जय 'मयण 'बाण मुसुमरणु, 10 'क्रोधादि चार कषाय रुपी 'शत्रु योद्धाओं का नाश करने वाले "कठिनाई से जीते जाए ऐसे कामदेव के 'बाणों को तोड़नेवाले, 'नवीन प्रियङ्गुलता के समान वर्णवाले, "हाथी के समान "गतिवाले "तीन भुवन के " स्वामी श्री "पार्श्वनाथ प्रभु की "जय हो||1|| 'जिनके 'शरीर का तेजोमण्डल मनोहर है, जो 'नागमणि की किरणों से युक्त है, "सरस पयंगु वण्णु "गय "गामिड, "जयउ "पासु "भुवणत्तय "सामिउ ||1|| 'जसु 'तणुकंति- कडप्प सिणिद्ध, 15 "सोहइ 'फणि-मणि 'किरणा 'लिद्धड, 'नं 'नवजलहर 'तडिल्ललंछिउ, "सो "जिणु "पासु "पयच्छउ "वेंछिठ॥२॥ जो 'वस्तुतः 'बिजली से युक्त 'नवीन मेघ से " शोभित है, "ऐसे "श्री पार्श्वनाथ "प्रभु" मनोवांछित फल प्रदान करें || २ || 14
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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