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________________ 'अप्पोल "दुप्पोलिअं च आहारे । 'अपक्व और अर्द्धपक्व वस्तु खाने से, "तुच्छोसहि-भक्खणया, "तुच्छ वनस्पति, फल के भक्षण करने से 'पडिक्कमे 'देसिअं 'सव्वं ॥ | 21 || 'दिन में लगे हुए 'सब अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।21।। श्रावक के लिए मान्य पंद्रह कर्मादान (पाप) वाले धंधे त्याज्य है। ^इंगाली "वण "साडी, "अङ्गारकर्म - अग्नि संबंधी कुम्हार, सुनार आदि का कामधंधा, # वनकर्म - जंगल के ठेके लेने, उसको काटने, कटवाने का धंधा, शकट कर्म - गाड़ी, ऊँट, मोटर, आदि का धंधा, "भाडी फोडी 'सुवज्जए 'कम्मं । " भाटक कर्म - घोड़ा, ऊँट आदि किराये पर चलाने का धंधा, "विस्फोटक कर्म - कुआँ, तालाब, खान आदि खोदने - खुदवाने का धंधा ये 'पाँच कर्म श्रावक के 'त्याग करने योग्य है। "वाणिज्य कर्म - हाथीदाँत, छीप, मोती प्रमुख का धंधा करना, G "लाख, गोंद आदि का धंधा, वाणिज्जं चेव दंत "ख" 'विस विसयं ||22|| धंधा, श्रावक को त्याग करना चाहिए।।22।। 'इसी प्रकार यन्त्रपीलन कर्मः चक्की, चरखा, घाणी, घट्टी, झीण, मील, आदि का धंधा, कम्मं 'निल्लंछणं च "दव - दाणं । "निलांछन कर्म : बैल आदि पशुओं के नाक, कान आदि अवयवों को छेदना, "दवदान कर्म : घर, जंगल, गाँव आदि में 'एवं खु "जंतपिल्लण "सर - दह-तलाय-स "गुड़, तेल, घी, दूध आदि रस का धंधा, 'पशु, मनुष्य, तोता, हंस आदि के केश एवं पंख आदि का धंधा. 'सोमल, अफीम, विष आदि जहरीले पदार्थों एवं शस्त्र आदि का य-सोसं, आग लगाने का धंधा | N " शोषण कर्म : सरोवर, द्रह, बड़े तालाब और जलाशयों को सूकाना, 60
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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