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________________ 'आयरिमप्पसत्थम्मि, 'परिग्रह के प्रमाण का उल्लंघन न करने के रुप इस व्रत में परिमाण परिच्छेए, 'अशुभ भाव एवं 'प्रमाद के निमित्त से जो कुछ विपरीत आचरण 'इत्थ 'पमाय 'प्पसंगेणं।।17|| किया हो।।17।। (वह इस प्रकार है ) पाँचवें व्रत के अतिचार 'धण धन्न खित्त-वत्थु, धन, धान्य-अनाज, 'क्षेत्र, घर, दुकान, नोरा आदि वस्तु 'रुप्प-सुवन्ने अ 'कुविअ-परिमाणे। चाँदी, सोना और तांबा, पीतल, लोहा आदि के प्रमाण का, दुपए चउप्पयम्मि य, दो पैर वाले नौकर आदि, चार पैर वाले गाय, बैल आदि के प्रमाण का उल्लंघन किया हो। पडिक्कमे 'देसि सव्वं ।।18।। 'दिन में लगे सब अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।18।। . छट्टे व्रत (पहला गुणव्रत दिग्परिमाण व्रत) के अतिचार गमणस्स उ 'परिमाणे ऊर्ध्वदिशा 'अधो दिशा और तिर्की दिशा के दिसासु उद्धं 'अहे अतिरिअं च। 'प्रमाण में गमन का उल्लंघन करने से 'वुड्ढि 'सइ-अंतरता क्षेत्र का प्रमाण बढ़ा देने से क्षेत्र का प्रमाण भूल जाने से पढमम्मि गुणव्वए निदे।।19।। 'प्रथम 'गुणव्रत में लगे दोषों की मैं निंदा करता हूँ।।19।। सातवें व्रत (दूसरा गुणव्रत भोगोपभोग विरमण व्रत) के अतिचार 'मजम्मि अ 'मंसम्मिअ, मदिरा और मांस आदि अभक्ष्य वस्तुओं के भक्षण से 'पुप्फे अ फले अ 'गंध मल्ले । तथा फूल-फल, "सुगंधी पदार्थ और पुष्पमाला आदि के 'उवभोग परिभोगे, · 'उपभोग, परिभोग करने से दूसरे 'गुणव्रत में 'बीअम्मि 'गुणव्वए 'निंदे।।20।। लगे हुए अतिचारों की मैं निंदा करता हूँ।।20।। (उपभोग : एक ही बार उपयोग में आने वाली वस्तुएँ, परिभोग : कई बार उपयोग में आने वाली वस्तुएँ ) सातवें व्रत के अतिचार सच्चित्ते पडिबढे, *प्रमाणाधिक सचित्त एवं सचित्त-मिश्र वस्तु वापरने से,
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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