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________________ रागेण व दोसेण व, और 'राग एवं द्वेष के द्वारा जो कर्म बांधा तं "निंदे तं च "गरिहामि || 4 || 'उसकी " मैं निन्दा और "गर्हा करता हूँ || 4 || 'आगमणे 'निग्गमणे, 'अनजानपन (उपयोग नहीं रहने) से 'ठाणे 'चंकमणे 'अणाभोगे । 'किसी के बलात्कार (दबाव) से और 'नौकरी आदि की पराधीनता से “आने में, 'जाने में, "ठहरने में, 'घूमने में, 'अभिओगे अनिओगे 10 "पडिक्कमे "देसिअं सव्वं । 1511 दिन में लगे हुए 'सब अतिचारों का मैं "प्रतिक्रमण करता हूँ || 5 || सम्यक्त्व के अतिचार ^जिन वचन में सन्देह, " अन्य मत की चाहना मलमलिन गात्र, 'संका "कंख विगिच्छा, वस्त्र वाले साधुओं पर अभाव होना, D "अन्य धर्म की प्रशंसा करना तथा उनका परिचय रखना ये पाँच 'सम्यक्त्व के 'अतिचार है। 'दिन में लगे हुए 'सब अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।।6।। छःकाय विराधना 'छक्काय समारंभे 'पृथ्वी आदि छः काय के 'आरम्भ में "अत्तट्ठा य 'परट्ठा 'पयणे अ 'पयावणे अ 'जे 'दोसा । 'अपने लिए एवं 'दूसरों के लिए और 'स्वपर दोनों के लिए 'आहारादि को पकाने और 'दूसरों के पास पकवानों से 'उभयट्ठा चेव "तं "निंदे || 7 || ' जो दोष लगा हो "उसकी "मैं निन्दा करता हूँ।।7।। "पसंस " तह संथवो कुलिंगीसु 'सम्मत्तस्स 'इआरे, 'पडिक्कमे देसिअं 'सव्वं ।।6।। बारह व्रत 'पंचण्ह 'मणुव्वयाणं, 'पाँच 'अणुव्रतों के 'गुणव्वयाणं च 'तिह 'मइआरे । और 'तीन गुणव्रतों के 'सिक्खाणं च 'चउण्हं तथा 'चार शिक्षाव्रतों के 'अतिचार में जो दोष लगा हो, "पडिक्कमे देसिअं 'सव्वं ॥ | 8 || दिन में लगे हुए सब अतिचारों का " मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।।8।।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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