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सूत्र विभाग
वंदित्तु-सूत्र (सावग - पडिक्कमण-सुत्तं )
भावार्थ : इस सूत्र में सम्यक्त्व सहित श्रावक के बारह व्रत के अतिचार बताकर दिन अथवा रात्री में लगे अतिचारों का प्रतिक्रमण-निंदा-गर्दा बताई गई है। पापों के प्रति पश्चाताप पूर्वक यह सूत्र बोलना चाहिए। नोट : इस सूत्र में A, B, C... आदि लिखे गए है वे उन उन व्रत के अतिचार हैं।
वंदित्तु सव्वसिद्धे,
'धम्मायरिए अ सव्वसाहू अ। 'इच्छामि 'पडिक्कमिउं,
'सावग 'धम्माइआरस्स ।।1।।
'सर्व सिद्ध भगवान को
तथा 'धर्माचार्यों को और 'सर्व साधुओं को 'वन्दन करके "श्रावक 'धर्म सम्बन्धी अतिचारों से मैं
"निवृत्त होना चाहता हूँ।। 1||
दूसरी-तीसरी-चौथी - पाँचवी गाथा में सामान्य आलोचना की गई है। 'जो मेरे व्रत के अतिचार में और
'जो मे 'वयाइआरो,
"नाणे तह दंसणे चरित्ते 'अ
. #सुमो अ 'बायरो वा,
"तं "निंदे तं च ”गरिहामि ।।2।। आत्मसाक्षी से "निन्दा और गुरुसाक्षी से "गर्हा करता हूँ ||2||
'दुविहे परिग्गहम्मी,
'नौकर, स्त्री आदि सचित्त और सोना, वस्त्र आदि अचित्त इन दो
प्रकार के 'परिग्रह के कारण
और 'पापकारी 'अनेक प्रकार के 'आरम्भ
'दूसरों के पास कराने एवं 'स्वयं करने में (जो अतिचार लगे हो ) दिन में लगे हुए उन अतिचारों का "मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।। 3 ।। 'अप्रशस्त 'इन्द्रियों के द्वारा मैंने 'जो 'कर्म बांधा,
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वीर्य एवं
"ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं च शब्द से तप,
संलेखना के विषय में, छोटा अथवा 'बड़ा दोष लगा हो "उसकी मैं
'सावजे 'बहुविहे अ 'आरंभे । 'कारावणे अ 'करणे,
"पडिक्कमे 'देसिअं सव्वं।।31 'जं 'बद्धमिंदिएहिं,'
'चउहिं 'कसाएहिं 'अप्पसत्थेहिं । 'क्रोधादि चार 'कषायों के द्वारा जो कर्म बांधा,
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