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________________ तो फिर वह बिचारी चुप कैसे रह सकती थी ? उसके अरमान तो यही रहे होंगे कि मैं सबको अपना बना लूँगी, परंतु तुम्हारा व्यवहार हमेशा उसे परायेपन का एहसास दिलाता रहा । तुम्हारे बर्ताव ने उसके मन में फिट बैठा दिया कि यहाँ सब पराये हैं। सब मेरे दुश्मन हैं। तुमने व्यवहार परायों जैसा रखा और अपेक्षा अपनों से भी अधिक रखी। डॉली तुम्हारे साथ 20 साल तक रही, पर उसने कभी तुम्हें चाय बनाकर देना तो दूर पानी का ग्लास भी भरकर दिया था ? नहीं ना । जब तुम्हारी बेटी से तुम्हें अपेक्षा नहीं थी तो घर में आई अपनी नई बहू से तुम इससे बड़ी अपेक्षाएँ कैसे रख सकती हो ? और उसे बेटी की तरह प्रेम देने के बदले सदैव उसे टोका, उसके साथ खराब व्यवहार किया। उस पर नियंत्रण रखे। यह कहाँ का न्याय है ? सुषमा : जयणा, डॉली के जाने के बाद मुझे डर था कि आनेवाली बहू कहीं प्रिन्स को बहकाकर मुझसे दूर न कर दे। डॉली को मैंने खूब प्रेम दिया। नतीजा, वह मुझे ही धोखा देकर चली गई। मुझे बहू के संबंध में भी यही डर था। इसलिए मैं उसे कहीं बाहर नहीं भेजती थी। मैं उसे पियर इस डर से नहीं भेजती थी कि कहीं अपनी माँ के बहकावे में आकर वह मेरे बेटे को मुझसे दूर न कर दे। डॉली पर नियंत्रण न रखा, इसलिए अंत में मुझे पछताना पड़ा। अतः सावधान बनकर मैंने पहले से ही खुशबू पर नियंत्रण रखना शुरु किया तो मैंने क्या गलत कर दिया ? जयणा: सुषमा ! तुमने बेटी की तरह उस पर नियंत्रण रखा, पर क्या बेटी की तरह उसे वात्सल्य दिया? बेटी जैसा प्रेम दिया ? बेटी मानकर उसकी भूलों को माफ करने की कोशिश की? नहीं, मात्र अपने अधिकारों का उपयोग किया परंतु कभी अपने कर्तव्यों का पालन किया ? तुम कह रही हो कि नियंत्रण रखकर तुमने कोई गलती ही नहीं की। अरे ! यही तो तुम्हारी सबसे बड़ी गलती थी। सुषमा ! नियंत्रण बच्चों पर लगा सकते है बहूओं पर नहीं। उन्हें तो स्वतंत्र ही रखना चाहिए। साथ ही वे कहीं स्वच्छंद न बन जाए। इसका पूरा-पूरा ध्यान भी रखना चाहिए। तुम ही बताओ, प्रिन्स जब छोटा था। वह तुम्हारी अँगुली छोड़कर जब पहली बार चला तब तुम्हें कितनी खुशी हुई थी। जब पहली बार उसने तुम्हें मॉम कहकर पुकारा तब तुम्हारी खुशी का कोई पार नहीं था। धीरे - धीरे वह बड़ा हुआ । अपने आप स्कूल जाने लगा, कॉलेज गया और आज अपने पैरों पर खड़ा हो गया है। इस प्रकार जीवन की प्रत्येक सीढ़ी में वह जितना स्वतंत्र होता गया उतनी ही तुम्हें खुशी होने लगी। लेकिन साथ ही वह स्वच्छंदी न बन जाएँ इसका तुमने पूरा ख्याल रखा। उसे चलना सिखाया? परंतु वह चलकर कहीं गलत रास्ते पर न जाएँ इसका तुमने ध्यान रखा। वह अपने आप
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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