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बल मिल गया, जब एक दिन खुशबू के घर से फोन आया और खुशबू उस समय रसोई घर में थी। फोन सुषमा ने उठाया। सुषमा : हेलो, कौन? ललिता : सम्धनजी ! मैं खुशबू की मॉम बोल रही हूँ। सुषमा : सम्धनजी ! कैसी है आप?
(सुषमा को इस प्रकार बातें करते देख खुशबू को पता चल गया कि फोन उसकी माँ का है। बहुत दिनों के बाद माँ से बात करने को मिलेगी ऐसा सोचकर खुशबू बहुत खुश हुई परंतु हुआ कुछ और ही) सुषमा : क्या? आपका भतीजा आया है इसलिए खुशबू को भेजूं। नहीं सम्धनजी, मैं अब उसे नहीं भेज सकती। मेहमान के कारण घर पर बहुत काम है। कोई विशिष्ट प्रसंग होता तो मैं मना नहीं करती। ललिता : ठीक है, एक बार मेरी खुशबू से बात करवा दीजिए। सुषमा : वो क्या है ना खुशबू पड्रेस में गई हुई है। वह आयेगी तब फोन करवा दूंगी। ललिता : ठीक है !
सुषमा ने फोन रख दिया परन्तु वह यह नहीं जानती थी कि यह बात खुशबू ने सुन ली है। वहाँ से सुषमा सीधे अपने कमरे में चली गई। उसने इस बात का जिक्र भी खुशबू से नहीं किया। अपनी सासु का यह व्यवहार देखकर खुशबू स्तब्ध रह गई। ऐसे ही एक दिनसुषमा : क्या बात है खुशबू ! आज बाज़ार में इतनी देर हो गई? खुशबू : मम्मीजी ! पड़ोस के आंटी मिल गए थे। उनके साथ बात करने रुक गई थी। सुषमा : खुशबू ! इस प्रकार रास्ते पर लोगों से बात करना अच्छी बात नहीं है। मुझे यह बिलकुल पसंद नहीं है। खुशबू : पर मम्मीजी वे मुझे रास्ते पर नहीं बल्कि अपनी बिल्डिंग के नीचे ही मिले थे। सुषमा : (गुस्से में आकर) जबान मत चलाओ। मैंने एक बार कह दिया कि बात नहीं करना मतलब नहीं करना समझी।
(अपनी गलती नहीं होने पर भी बार-बार अपनी सासु के टोकने से खुशबू का मन धीरे-धीरे अपनी सासु पर से उतरने लगा। धीरे-धीरे सुषमा ने अपने अधिकारों के बल पर खुशबू को तंग करने