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* जिनकी स्थिति कमजोर है उनका बहुमान पूर्वक तिलक कर उनकी आर्थिक स्थिति का समाधान
हो जाए इतना पर्याप्त धन दें अथवा इतनी शक्ति न हो तो यथाशक्ति भक्ति करें। * हो सके तो वहाँ साधर्मिक को गुप्त रीत से, उनके कहने से पहले ही उनकी माँग पूर्ण कर लें।
इस प्रकार करने से देने वाले को अहंकार नहीं आयेगा एवं लेनेवाले को भी शर्म नहीं आयेगी। * प्रत्येक धनाढ्य व्यक्ति यदि अपने फिजूल के खर्च बंद करके वह पैसे साधर्मिक भक्ति में
लगा दें, तो कितने ही साधर्मिकों का उद्धार हो जाएँगा। अर्थात् दूसरा कुछ नहीं परंतु मात्र अपने मौज-शौक की दस प्रतिशत रकम भी अपने साधर्मिकों की जरुरते पूरी करने के लिए पर्याप्त है। * प्रत्येक संघ में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि संघ का एक धनाढ्य श्रावक कम से कम एक
साधर्मिक के घर को संभालने की जवाबदारी लें। जिससे साधर्मिकों की देखरेख के प्रश्न का
समाधान हो जाएँगा तथा जिन शासन की प्रभावना का पुण्य भी प्राप्त होगा। * साधर्मिकों का लाभ लेने के लिए सदैव पुरुषार्थ करें। हमेशा लाभ न मिलता हो तो कम
से कम वर्ष में एक बार तो अवश्य ही शक्ति अनुसार स्वामीवात्सल्य या तपस्वियों के पारणे का लाभ या बाहर गाँव से आनेवाले साधर्मिकों का लाभ या फिर कोई गुरु भगवंतों के साथ
आनेवाले का लाभ लें। * यह भी न हो सके तो स्वामीवात्सल्य में यथाशक्ति पैसे लिखवाएँ। जिससे सरलता पूर्वक
कई साधर्मिकों की भक्ति का लाभ मिल सके। * स्वामीवात्सल्य में स्वयं के हाथों से संघ के श्रावकों के पैर दूध से धोकर तिलक करें। तथा
हाथ जोड़कर बहुमान पूर्वक बैठाकर भोजन करवाएँ। * लाभ देनेवाले श्रावक-श्राविकाएँ भी निम्न बातों का ध्यान रखें। जिससे लाभार्थी के साथ वे
भी पुण्य का उपार्जन कर सके। 1. स्वामीवात्सल्य करनेवालों की दिल खोलकर प्रशंसा करें। 2. भोजन में किसी प्रकार की कमी हो तो उसकी निंदा न करें। 3. जिस प्रसंग को लेकर स्वामीवात्सल्य का आयोजन किया गया हो उस प्रसंग में भाग लें, जैसे कि सिद्धचक्र पूजन का प्रसंग हो तो पूजन में अवश्य भाग लें। * पोष वदि 10 या कार्तिक पूनम के स्वामीवात्सल्य का प्रसंग हो तो उस दिन की आराधना
करें। तथा घर में रसोई बनाने में जितना समय लगता है कम से कम उतना समय तो परमात्मा भक्ति या किसी भी धार्मिक कार्य में व्यतीत करें।