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प्रतिदिन फल-मिठाई आदि ले जाता। सास-ससुर के अलग हो जाने के बाद तो विधि एकदम आज़ाद पंछी बन गई थी। अब वह मन चाहे ढंग से खा-पी सकती थी, घूम-फिर सकती थी इसलिए उसे झगड़ा करने का कोई मौका ही नहीं मिलता था। शुरुआत के थोड़े दिन तो वह दक्ष के साथ अच्छा व्यवहार करती थी, क्योंकि वह दक्ष को बताना चाहती थी कि पहले उसके माता-पिता के कारण ही उसका बर्ताव इतना खराब बन गया था। पर आखिर हाथी को नाजुक बंधनों से बांधे तो वह बंधन कब तक टिकेंगे। वैसे ही धीरे-धीरे विधि का स्वभाव उभरने लगा। विधि बचपन में खिलौनों के लिए अपने भाई से झगड़ी, स्कूल गई तब अपनी सहेलियों से झगड़ी, कॉलेज जाने के बाद भाभी के साथ झगड़ी और ससुराल आने के बाद अपने सास-ससुर से झगड़कर उन्हें अलग भेज दिया। ऐसे झगड़ालु स्वभाव को विधि कब तक छुपा सकती थी।
अपना अहं टूटने पर दक्ष भी अब छोटी-छोटी बातों में उस पर गुस्सा होने लगा। इस प्रकार दोनों में मन-मुटाव बढ़ने लगे। ऐसे में एक दिन विधि को खुश करने के लिए दक्ष ने विधि के मनपसंद हीरो की फिल्म के टिकट लाए और साथ ही डीनर होटल में ही करने का विचार किया। तब-) दक्ष : विधि ! आज रात 6 से 9 की फिल्म के टिकट लाए है। साथ ही २ का डीनर हम लोग तुम्हारी मनपसंद होटल ताज़ में ही करेंगे। तुम ठीक 5.45 को सिनेमा हाल के सामने मेक्डोनल की केन्टीन में मेरा इंतजार करना। विधि : दक्ष ! फिल्म, वो भी आज? एक बार टिकट लाने से पहले मुझे पूछा तो होता कि आज मैं फ्री हूँ कि नहीं? आज तो मुझे एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट किटी पार्टी में जाना था। पता है उसमें
आज मेरी फॉरन की भी सारी सहेलियाँ आनेवाली थी और ये प्लान हमने एक महिने पहले ही बना दिया था। अब मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी? दक्ष : कम ऑन विधि ! रोज तो जाती हो किटी पार्टी में, एक दिन नहीं जाओगी तो क्या फर्क पड़ जाएगा? अपनी सहेलियों से फिर कभी मिल लेना। प्लीज़ तुम्हारा प्लान फिर कभी बना लेना। विधि : ठीक है दक्ष तुम इतनी जिद्द कर रहे हो तो मैं किटी पार्टी केन्सल करने की कोशिश करती हूँ। (उसने अपनी सहेली को फोन लगाया ) विधि : हेलो सुज़ी क्या कर रही हो? सुज़ी : अरे विधि ! बस पार्टी के लिए तैयार हो रही थी। तुम्हें तो पता ही है मुझे तैयार होने में कितना समय लगता है।