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विधि : हाँ, हाँ पता ही था मुझे, मेरे आते ही मुझ पर इल्ज़ाम लगाने शुरु हो जाएँगे । सुधीर : पर बेटा ! मैं तो यही पूछ रहा था कि इतनी देर हो गई, तुम कहाँ पर थी ?
विधि : वो ही तो, आते ही मेरी पूछताछ करनी शुरु कर दी। कहाँ से आती हूँ, कहाँ जाती हूँ। सबका हिसाब दूँ आपको ?
सुधीर : लेकिन बेटा ! मैं तो इसलिए कह रहा था कि आज तुम्हारी सासुमाँ की तबियत ज्यादा खराब थी। यदि तुम्हें कहीं जाना ही था, तो मुझे कह देती, मैं ऑफिस से जल्दी आ जाता। विधि : सासुमाँ की तबियत तो आए दिन खराब होती रहती है। इसका मतलब ये थोडी है कि मैं बाहर जाना छोड़ दूँ। वैसे भी आज मेरी बहुत इम्पोर्टेन्ट पार्टी थी और मेरा वहाँ जाना भी बहुत जरुरी था।
( बहुओं का कर्तव्य होता है कि वे सास-ससुर की सेवा करें, परंतु विधि अपने इस कर्तव्य को कर्तव्य नहीं मानकर उसे भाररूप समझती थी । उसे अपने सास-ससुर की सेवा से ज्यादा बाहर घूमने-फिरने में दिलचस्पी थी। सास-ससुर उसे बोझ लगते थे। इसलिए वह अपने सास-ससुर से अलग होना चाहती थी। दक्ष को अपने माता-पिता के प्रति बहुत अहोभाव और आदरभाव थे । इसलिए विधि अपना कार्य सफल करने के लिए आए दिन छोटी-छोटी बातों पर झगड़े और नाटक खड़े कर देती । जिससे दक्ष तंग आकर अपने माता पिता को अलग कर दे या स्वयं अपने माता-पिता से अलग हो जाए।)
( इतने में दक्ष ऑफिस से आया और विधि दक्ष के आते ही ज़ोर-ज़ोर से रोने का नाटक करने लगी । )
विधि : हे भगवान ! मेरी तो किस्मत ही फुटी हुई है। मेरी किस्मत में तो सबके ताने ही सुनना लिखे है ।
दक्ष : अरे ! ये क्या हँगामा हो रहा है? विधि तुम रो क्यों रही हो? पिताजी, ये सब क्या हो रहा है ? कुछ तो बताओ?
सुधीर : बेटा ! मैं बताता हूँ।
विधि : (रोते हुए) आप क्या बताएँगे? मैं बताती हूँ। देखिए ना, आपको तो पता ही है कि मेरे माता-पिता ने मुझे कितने प्रेम से पाल पोसकर बड़ा किया है। हम चारों भाई-बहन कहाँ आते-जाते है, कभी कुछ भी नहीं पूछा। हमारी हर इच्छा पूरी की
अलावा और भी कुछ बताओगी?
दक्ष : विधि ! इन फालतु बातों के विधि : (गुस्से में) बता तो रही हूँ। आपको तो पता ही है कि आजकल मैं सप्ताह में दो-तीन बार ही किटी पार्टी में जाती हूँ और आज मेरे लिए किटी पार्टी में जाना बहुत जरूरी था। बस मुझे आने
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