________________
आखिर फाईनल का दिन आ गया। प्रतियोगिता में विधि की डिज़ाईन सबके ध्यान का केन्द्र बन गई और विधि "बेस्ट नेशनल फेशन डिज़ाईनर” बन गई। घर आते ही......
विधि भाभी ! ये देखो।
:
मोक्षा : वाह विधि ! कितनी अच्छी ट्रॉफी है। आखिर तुम Competition जीत ही गई। मोक्षा : मैं नहीं भाभी ! हम जीत गए । बहुत-बहुत धन्यवाद भाभी ! जो आपने मेरी इतनी मदद नहीं की होती तो शायद ही मैं ये प्रतियोगिता जीत पाती ।
(इस प्रकार प्रतियोगिता के माध्यम से विधि मोक्षा के बहुत करीब आ गई और अपने कॉलेज के सिवाय भी जब भी उसे कुछ काम होता तो वह मोक्षा की मदद लेती थी। इतना ही नहीं घर के काम में भी वह मोक्षा की खूब मदद करने लगी। मोक्षा भी समय-समय पर उसे अच्छी बातें सिखाती, गलती होने पर समझाती और धार्मिक वातावरण में जोड़ती थी। विधि और मोक्षा अब ननंद-भाभी कम और सहेलियाँ ज्यादा बन गई थी।
इसी बीच विधि के लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आने लगे। अच्छा खानदान, अच्छा लड़का, अच्छे परिवार को देखकर उसके माता-पिता ने विधि की सगाई 'दक्ष' से कर दी। 'दक्ष' मोक्षा के चचेरे चाचा का बेटा था। इसलिए मोक्षा भी दक्ष के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थी। कुछ ही दिनों में शादी की तारिख भी तय हो गई। मोक्षा विधि को ससुराल में कैसा व्यवहार करना चाहिए इस बारे में समय-समय पर बताती रहती थी। देखते ही देखते विधि की शादी का दिन नज़दीक आ गया और विधि हमेशा-हमेशा के लिए उस घर से पराई हो गई। शादी के बाद विधि अपने पति के साथ थोड़े दिनों के लिए घूमने गई। घूम फिरकर आने के पश्चात् कुछ दिन तक तो विधि ने अपने सास ससुर के साथ अच्छा बर्ताव किया। लेकिन सहनशीलता की कमी एवं सास-ससुर के नियंत्रणों से विधि का स्वभाव बिगड़ता गया। घर में आए दिन झगड़े होने लगे इन झगड़ों से दक्ष की हालत भी खराब होती गई। वह न तो अपनी पत्नी का पक्ष ले पाता और न अपनी माँ का । इससे दोनों के बीच भी आए दिन मन-मुटाव होते रहते थे ।
ससुराल जाने के बाद भी विधि अक्सर किटी पार्टी में जाया करती थी। उसके सास-ससुर को यह बिलकुल पसंद नही था। पर वे विधि से डरते थे इसलिए उसे कुछ कहते नहीं थे। एक दिन विधि की सासु शारदा की तबियत ठीक नहीं थी, फिर भी विधि अपनी सासु को घर में अकेली छोड़कर पार्टी में चली गई। घर आते-आते रात के 9 बज गए। जैसे ही वह घर पहुँची तब विधि के ससुरजी ) सुधीर : बहु ! इतनी रात हो गई, कहाँ से आ रही हो? कुछ बता कर भी नहीं गई ?
156