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श्री भगवान के अभिषेक का अधिकार आतम भक्ति मल्या केई देवा.... मेरु पर्वत पर कितने ही देव कोई अपनी भक्ति से, कोई मित्र की प्रेरणा से, कोई स्त्री की प्रेरणा से, कोई कुल धर्म का विचार कर एवं कोई धर्मी देव की मित्रता से स्नात्र महोत्सव में आते हैं। वहाँ चारों निकाय के देव एकत्रित होते हैं। सौधर्मेन्द्र प्रभु को गोद में लेकर बैठते हैं। फिर अच्युतेन्द्र के आदेश से अभिषेक शुरु होते हैं। 1-1 अभिषेक में 64000 कलशों का अधिकार हैं। कुल अभिषेक 250 हैं। अतः 64000x250=1 क्रोड़ 60 लाख कलशों से अभिषेक होता है।
___250 अभिषेक इस प्रकार हैं सूर्य-चन्द्र सिवाय के 62 इन्द्रों के सभी निकाय के लोकपाल के देवों के मिलाकर ढाई द्वीप के चन्द्र के ढाई द्वीप के सूर्य के गुरु स्थानिक देवों का सामानिक देवों का सेनापति देवों का . अंगरक्षक देवों का तीन पर्षदा (बाह्य, अभ्यंतर एवं मध्यम सभा) परचूरण (प्रकीर्णक) देवों का सौधर्मेन्द्र की 8 इन्द्राणियों के इशानेन्द्र की 8 इन्द्राणियों के असुरेन्द्र (भवनपति निकाय) की इन्द्राणियों के नागेन्द्र (भवनपति निकाय ) की इन्द्राणियों के ज्योतिष की इन्द्राणियों के व्यंतर की इन्द्राणियों के कुल
250 अभिषेक 250 में से 204 देवता संबंधी एवं 46 इन्द्राणी संबंधी अभिषेक है।