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________________ 1 ऋजु गति 2. एक समय की विग्रह गति 3. दो समय की विग्रह गति 4. तीन समय की विग्रह गति 5. चार समय की विग्रह गति ..(2) विग्रहगति : जब मरण स्थान की अपेक्षा जन्म स्थान अन्य श्रेणी में होता है तब जीव को बीच में मोड़ लेना पड़ता है। आनुपूर्वी कर्म का उदय जीव को मोड़ लेने में सहायक बनता है। यह विग्रहगति जघन्य से 1 समय की एवं उत्कृष्ट से 4 समय की होती है। ___(1) एक समय की विग्रहगतिः त्रस नाड़ी में रहा हुआ जीव प्रथम समय में विदिशा में से आकर प्रथम मोड़ लेकर दूसरे समय में किसी भी दिशा में उत्पन्न होता है। (2) दो समय की विग्रहगति : पहले समय में त्रस नाड़ी के बाहर की दिशा में से अंदर आता है। यहाँ प्रथम मोड़ लेकर दूसरे समय ऊर्ध्वलोक में जाता है। वहाँ द्वितीय मोड़ लेकर त्रस नाड़ी के बाहर किसी भी दिशा में तीसरे समय उत्पन्न होता है। इसके बीच एक समय के लिए जीव अणाहारी रहता है। (3) तीन समय की विग्रहगति : अधोलोक की विदिशा में से प्रथम समय में दिशा में आता है दूसरे समय में प्रथम मोड़ लेकर त्रस नाड़ी में आता है। तीसरे समय दूसरा मोड़ लेकर ऊपर जाता है। चौथे समय तीसरा मोड़ लेकर त्रस नाड़ी के बाहर किसी भी दिशा में उत्पन्न होता है। इसके बीच में दो समय के लिए जीव अणाहारी रहता है। (4) चार समय की विग्रहगति : पहले समय में अधोलोक की विदिशा में से जीव अधोलोक की दिशा में आता है। दूसरे समय मोड़ लेकर त्रस नाड़ी में आता है। तीसरे समय में मोड़ लेकर ऊर्ध्वलोक में जाता है। चौथे समय मोड़ लेकर त्रस नाड़ी के बाहर किसी भी दिशा में जाता है
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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