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अशोक राजा
कुणाल
पाटलीपुत्र के राजा अशोक को कुणाल नामक पुत्र था । सौतेली माता के डर से अशोक राजा ने को बाल्यावस्था में ही अवन्ति नगरी भेज दिया था। जब कुणाल आठ वर्ष का हुआ तब अशोकराजा ने कुणाल के नाम एक पत्र लिखा "हे कुमार ! त्वयाऽधीतव्यमिति मदाज्ञाऽचिरेण विधेया। हे कुमार आपको अभी अध्ययन करना है, यह मेरी आज्ञा है ।" इस प्रकार का पत्र लिखकर अशोक राजा किसी कार्य में व्यस्त हो गये। उस समय कुणाल की सौतेली माता वहाँ आयी और उसने वह पत्र पढ़ा। पत्र पढ़कर उसने विचार किया कि जब तक यह कुमार रहेगा तब तक मेरे पुत्र को राज्य नहीं मिलेगा। इसके लिए मुझे कुछ करना पड़ेगा। और पत्र में जहाँ राजा ने अधीतव्यं ( अध्ययन करने योग्य) लिखा था । वहाँ उसने अपनी आँख में लगाये हुए काजल से "अ" अक्षर के ऊपर एक बिंदी लगा दी अर्थात् अधीतव्यं के बदले अंधीतव्यं हो गया। अर्थात् तू अंधा बनने योग्य है। और उसने वह पत्र बंद करके वहीं रख दिया।
राजा अशोक ने वह पत्र पढ़े बिना ही अवन्ति भेज दिया। कुणाल ने जब पत्र पढ़ा तब उसे बहुत ही ' दुःख लगा। परंतु अपने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करके उसने अपने ही हाथों से गरम लोहे की सलाखें अपनी दोनों आँखों में डाल दी। अब कुणाल अंधा हो गया । अहो ! मात्र एक अनुस्वार रुपी मात्रा बढ़ जाने से अर्थ का अनर्थ हो गया।
इस प्रकार हमें भी सूत्र अशुद्ध नहीं सिखने चाहिए । जो मात्रा जहाँ हो, उसका उच्चार भी वहीं होना चाहिए, जिससे अर्थ का अनर्थ न हो जाये। सूत्र याद करते समय ही अक्षर, पद, मात्रा, संपदा आदि बराबर देख लें ताकि सूत्र याद करते समय भूल न हो।
माँ-बाप को मत भूलना
घर का नाम मातृछाया और पितृछाया पर उसमें माँ बाप की परछाई भी न पडने दे तो फिर उस घर का नाम पत्नीछाया रखना ज्यादा उचित है।
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