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________________ बान की आशातना से बचिए वरदत्त और गुणमंजरी की कथा जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सर्व शोभा युक्त पद्मपुर नामक नगर था। वहाँ के राजा अजितसेन एवं रानी यशोमति को वरदत्त नामक पुत्र था। जब वह आठ वर्ष का हुआ तब राजा-रानी ने उसे पंडित के पास पढ़ने के लिए भेजा। लेकिन ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण वह एक भी अक्षर पढ़ नहीं पाया। वरदत्त कुमार जब यौवनावस्था में आया तब उसे कोढ़ रोग हो गया। कोढ़ रोग से कुमार का शरीर बेडौल और कुत्सित बन गया। राजा-रानी ने अनेक उपचार करवायें पर सब निरर्थक गये, रोग कम नहीं हुआ। उसी पद्मपुर नगर में सिंहदास नामक सेठ रहता था। उसको कर्पूरतिलका नाम की पत्नी और गुणमंजरी नाम की पुत्री थी। उसकी पुत्री जन्म से ही रोगी एवं गूंगी थी। माता-पिता ने गुणमंजरी के रोग एवं गूंगेपन को दूर करने के अनेक प्रयास किये, पर रोग नहीं गया। ___एक दिन उस नगर के उद्यान में चतुर्ज्ञानी श्री विजयसेनसूरिजी पधारें। नगर के लोग उनको वंदन करने के लिए उमड़ पड़े। राजा भी सपरिवार वंदन करने के लिए गए। आचार्यप्रवर ने धर्मदेशना दी। देशना के पश्चात् सिंहदास सेठ ने खड़े होकर ज्ञानी गुरु से पूछा “हे भन्ते ! मेरी पुत्री गुणमंजरी ने ऐसा कौन-सा निकृष्ट कर्म बाँधा है जिसके फलस्वरुप इसे रोगी एवं गूंगी होना पड़ा?" तब ज्ञानी गुरु ने कहा “हे देवानुप्रिये ! यह विश्व अनेक संकटों एवं विपदाओं का स्थान हैं। इस विश्व में जीव जैसा कर्म बाँधता है वैसा फल भोगता है। तेरी पुत्री भी पूर्व भव में बाँधे गये कर्म के कारण रोगी एवं दुःखी बनी है। इसका पूर्वभव इस प्रकार है ___ धातकीखंड के भरतक्षेत्र में खेटकपुर नामक नगर में जिनदेव नामक एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुंदरी था। उन दोनों को 5 पुत्र एवं 4 पुत्रियाँ थी। जिनदेव ने अपने पाँचों पुत्रों को अध्ययन करने के लिए पाठशाला भेजा। परन्तु वे पाँचों उन्मत होकर खेल-कूद में ही लीन रहते थे। एक बार उन बालकों के तूफानों से रुष्ट होकर अध्यापक ने उन्हें थोड़ा मारा-पीटा। इस पर वे पाँचों रोते-रोते अपनी माँ के पास गये। माँ ने ममतावश अपने पुत्रों से कहा कि "बेटा! आज के बाद तुम पढ़ने मत जाना। तुम्हारे पिता के पास धन की कमी कहाँ है? तुम लोग घर में ही आराम से रहो।” इस प्रकार कहकर स्वयं अध्यापक को डाँटने के लिए पाठशाला गई। वहाँ अध्यापक से कलह (झगड़ा) किया तथा पुस्तकें-पट्टियाँ
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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