________________
जयणा : क्या बात है बेटा, जब से तुम आई हो थोड़ी उदास लग रही हो? और चार दिनों में तुम्हारे घर से भी किसी का फोन नहीं आया। ससुराल में सब ठीक तो है? . मोक्षा : हाँ माँ! सब ठीक है, लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रही हो? (जयणा अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरती हुई) जयणा : बेटा! आज तक मैंने तुम्हें कभी इतना उदास नहीं देखा। (मोक्षा से कुछ बोला नहीं गया वह सिर्फ रोने लगी।) जयणा : क्या बात है बेटा! तुम रो रही हो? मुझे बताओ, मुझे नहीं बताओगी तो किसे बताओगी? मोक्षा : मम्मी! ससुराल में सब ठीक है, ससुरजी तो बहुत अच्छे है। विवेक भी मुझसे बहुत प्यार करते है पर... जयणा : पर क्या बेटा? मोक्षा : मम्मी! मेरी सासुमाँ और ननंद का स्वभाव..... (थोड़ी देर बाद रोते-रोते मोक्षा ने अपने साथ बीती सारी घटना सुना दी।) मोक्षा : मम्मी! मैं आपसे पूछती हूँ , 20-20 वर्ष तक आपके घर पर रहने वाली मैं जब ससुराल में बहू बनकर गई तब से मेरे दिल में एक ही अरमान था कि पूरे परिवार को प्रेम देना, उनकी हर इच्छाओं को पूरा करना, इसलिए मैंने उनकी हर इच्छाओं को ध्यान में रखकर अपनी कई इच्छाओं को दफना दिया। फिर भी उन लोगों ने मेरे साथ खिलौने जैसा बर्ताव किया। उनकी हर इच्छाओं का ध्यान रखना, मेरा कर्तव्य था तो क्या मेरी इच्छाओं का ध्यान रखना उनका कर्तव्य नहीं था? माँ! मैं मानती हूँ कि फुटबॉल किक् मारने के लिए ही होता है। लेकिन फुटबॉल को इस हद तक किक् मारी जाए कि वह फट जाए तो वह उस फुटबॉल के साथ अन्याय होगा। वैसे ही माँ, मैं मानती हूँ मुझे सहन करना था। सहन करना एक बहू का धर्म होता है। लेकिन माँ सहन करने की भी कोई हद होती है । आज तक उनके हर एक आक्रोश को मैंने सहन किया है। लेकिन अब मुझसे सहन नहीं होता। आज तक मैं चुप रही लेकिन आगे से मैं चुप रहने वाली नहीं हूँ। उनके सामने मुझे बोलना ही ना पड़े इसलिए हम दोनों ने सोच लिया है कि हम अब परिवार से अलग रहेंगे और हमारे इस फैसले में पापाजी ने भी अपनी सहमति दे दी है। जयणा : क्या? मेरी बेटी होकर तुम एक माँ को अपने बेटे से अलग करोगी? मोक्षा : माँ! मैं जान-बुझकर एक माँ से उसका बेटा अलग नहीं कर रही हूँ। लेकिन मेरे साथ हुआ ही ऐसा है |कि जिसके कारण मुझे यह कदम उठाना पड़ रहा है। मुझे जिसने प्रेम दिया उसके प्रति मैंने कभी खराब भाव