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या द्वेष भाव नहीं रखा। जिसने मेरे जीवन में दीप जलाकर प्रकाश किया उसके जीवन में मैंने कभी अंधकार लाने की कोशिश नहीं की। लेकिन माँ! उन्होंने मेरे साथ ऐसा ही बर्ताव किया है, जिसके बदले में उन्हें अपने बेटे से अलग होना ही पड़ेगा। जैसा उन्होंने किया वैसा उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। जयणा : मोक्षा! तुम्हारे जीवन में चाहे कैसा भी दुःख का तूफान आए, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम्हारे दुःख में जो भी व्यक्ति निमित्त रूप बने हो, उन सबको दुःखी करने में तुम कटिबद्ध बन जाओ। तुम्हारे मन में गलतफहमियों ने अपना अड्डा जमा लिया है। दिमाग को थोड़ा ठंडा रखो तो तुम्हें सारा समाधान मिल जाएगा। मोक्षा : माँ! कैसे रखू अपने दिमाग को ठंडा? विद्यार्थी को सिर्फ एक शिक्षक की आज्ञा माननी होती है, मरीज़ को सिर्फ एक डॉ. की नसीहत के अनुसार चलना होता है। एक क्रिकेटर को सिर्फ अपने टीम कोच
की ही सलाह माननी पड़ती है, परन्तु एक बहू बनकर आई स्त्री को, सिर्फ पति के स्वभाव के अनुसार ही नहीं बल्कि परिवार के सभी सदस्य के स्वभाव के अनुसार अपना स्वभाव सेट करना होता है। आप ही बताओ माँ, यह कैसे संभव हो सकता है ? जयणा : बेटा! विद्यार्थी को सिर्फ एक शिक्षक का ही नहीं, बल्कि मोनिटर की आज्ञा भी माननी पड़ती है। मरीज़ को सिर्फ एक डॉ. की ही नहीं, नर्स की नसीहत के अनुसार भी चलना पड़ता है। एक क्रिकेटर को अपने टीम कोच का ही नहीं, अपने टीम के कप्तान का भी मानना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार ससुराल जाने वाली बेटी को सिर्फ पति के ही नहीं घर के सभी सदस्यों के स्वभाव के अनुरुप अपना स्वभाव बनाना ही पड़ता है। मोक्षा : तो इसका मतलब यही हुआ कि मैंने ही गलती की है। लेकिन मम्मी! जब मैंने पहली बार ससुराल में कदम रखा था, तब यही सोचा था कि मैं सभी के दिलों को जीत लँगी। प्रेम देकर घर का वातावरण बदल दूंगी। पढ़ाई में ननंद एवं देवर की मदद करूँगी। सास-ससुर की मन लगाकर सेवा करूँगी। कभी किसी को शिकायत का मौका ही नहीं दूँगी और यह सब करने के लिए मैंने अपने रात-दिन एक कर दिए पर माँ, मेरी सास और ननंद को तो स्वयं में ही दिलचस्पी है। मेरी तो उन्हें कुछ पड़ी ही नहीं है। अब तो मुझे ऐसा लगता है कि पानी डालना ही है तो वस्त्र पर डालो जिससे वस्त्र साफ तो होगा, वृक्ष पर डालो जिससे वह नवपल्लवित तो होगा, लेकिन पत्थर पर डालने से क्या फायदा? इसलिए हमने उनसे अलग रहने का विचार कर लिया है। जयणा : तुम्हारी सोच में कोई दम नहीं है बेटा। आज जिस कार्य में तुम्हें जीत के दर्शन हो रहे है कल उसी कार्य में तुम्हें हार मिले तो आज की ऐसी जीत से सौ कदम दूर रहना अच्छा है। मोक्षा : मैं कुछ समझी नहीं माँ। आप किस जीत और हार की बात कर रही हो ?
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