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________________ जया : बेटा! मैं तुम्हें यही बताना चाहती हूँ कि अपने सास-ससुर से अलग होकर आज तो तुम नया घर बसाकर प्रतिकूलताओं के सामने तो जीत जाओगी, परंतु भविष्य में तुम्हें स्वतंत्र कुटुंब की समस्याओं के सामने हारना ही पड़ेगा, इसलिए बेटा, घर से अलग होने का विचार ही छोड़ दो, अन्यथा तुम्हारा भविष्य खतरे में आ जाएगा। मोक्षा : माँ, हार और जीत तो दूसरे नंबर पर है। लेकिन हमारे बीच में जो प्रेम भाव घट रहा है उसका क्या ? माँ, आपको ऐसा नहीं लगता कि यदि हम संयुक्त परिवार से अलग हो जाए तो हमें द्वेष भाव का शिकार होना ही नहीं पड़ेगा। साथ में रहने से एक दूसरे की गलतियाँ दिखती है। हमारी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य होता है तो हमें गुस्सा आता है और हम सामने वाले के विरुद्ध कुछ कर लेते है तो उन्हें भी गुस्सा आ जाता है। स्वभाव भेद होने के कारण शब्दों में मिठास नहीं आती। वातावरण अशांत बन जाता है। इन सब से मुक्त रहने के लिए ही हमने स्वतंत्र परिवार में रहने का निर्णय लिया है और माँ कोई बड़ा झगड़ा होने के बाद उनसे हमेशा के लिए मुँह फेर कर चले जाने से तो अच्छा है कि हम अभी उन्हें समझाकर उनकी सहमति से खुशी-खुशी अलग हो जाए। वैसे भी मम्मी-पापा से प्रेम और लगाव होने के कारण हम थोड़े-थोड़े दिनों में मिलने चले जाया करेंगे, जिससे हमारे बीच प्रेम बना रहेगा। जयणा : पर बेटा! तुम अभी तक संयुक्त परिवार के महत्त्व को नहीं जान पाई, इसलिए ऐसी बात कर रही हो। संयुक्त परिवार में तुम्हें प्रतिकूलताओं को, दूसरों के स्वभाव को, दूसरों के व्यवहार को जरुर सहना पड़ेगा। लेकिन वहाँ तुम्हारा एवं विवेक का जीवन और तुम्हारा शील सलामत है। स्वतंत्र परिवार में तुम्हें अनुकूलता ही अनुकूलता मिलेगी। लेकिन वहाँ पर तुम्हारा जीवन सुरक्षित नहीं है। इस सच्चाई को तुम कभी भूल मत जाना। मोक्षा : माँ, आप किस अनुकूलता और किस सलामती की बात कर रही हो ? जयणा : बेटा, कल जाकर तुम अपने सास-ससुर से अलग हो जाओ और अपने स्वतंत्र घर में रहने चली जाओ। तब घर पर रहोगे तुम और विवेक, उसके बाद तुम मन चाहे ढंग से घूम-फिर सकोगी । मन चाहा खाना बनाकर खा सकोगी। वहाँ तुम्हें टोकने वाला कोई नहीं होगा। यानि सिर्फ अनुकूलता ही अनुकूलता। लेकिन हर सिक्के के दो पहलु होते है । उसी प्रकार जीवन रूपी सिक्के के भी दो पहलु है। पहला अनुकूलता रूपी पहलु तो मैंने तुम्हें बता दिया। लेकिन सलामती रूपी दूसरे पहलु के बारे में तुम्हें पता होता तो शायद कभी संयुक्त परिवार से अलग होने की बात नहीं करती। स्वतंत्र परिवार में विवेक सुबह नौ बजे ऑफिस चला जाएगा जो सीधा रात को नौ बजे ही आएगा। बीच के इन बारह घंटों में तुम घर पर अकेली रहोगी और मान लो कोई इसका फायदा उठाकर तुम्हारे घर में 085
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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