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चाहा तब खा लिया। अब सुसराल में आई हो तो यहाँ जैसा माहौल है वैसे रहना सीखो। ससुराल में जहाँ, जब, जैसे सब लोग रहते है, वैसे तुम भी रहो। यह नहीं हो सके तो सुबह का खाना खाने की आदत डाल दो, समझी। मोक्षा : मम्मीजी! मुझे बचपन से ही रात्रिभोजन त्याग है। इसलिए रात को खाना तो मेरे लिए मुमकिन नहीं है। मैं सुबह का खाने के लिए तैयार हूँ। सुशीला : हाँ, हाँ, बड़ी आई धर्म की पूछड़ी। मैं भी देखती हूँ कितने दिनों तक सुबह के ठंडे और लुखे सूखे खाने पर टिकती है। प्रशांत : सुशीला! कुछ सोचकर बोलो। एक दिन की बात हो तो ठीक है। रोज-रोज सुबह का खाना कैसे खायेगी बेचारी। थोड़ा तो ध्यान रखों। वैसे भी शादी के बाद कितनी पतली हो गई है। सुशीला : आप चुप ही रहिए। आपको पता है आज गैस के दाम कितने बढ़ गए है। बेचारा कितनी मेहनत करके कमाता है मेरा बेटा और ये यूँ ही उड़ाती रहेगी तो एक दिन घर का दिवाला निकल जायेगा।
(इस प्रसंग के बाद मोक्षा अपने लिए नया खाना न बनाकर दोपहर का बचा हुआ खाना ही शाम को खा लेती थी, पर उसने अपने धार्मिक संस्कारों को नहीं छोड़ा। इस घटना से मोक्षा के अलग घर बसाने के विचारों को और बल मिला। शाम को जब विवेक घर आया तब मोक्षा ने उसे इस घटना के बारे में कुछ भी नहीं बताया। क्योंकि वह जानती थी कि पति जब घर आता है तब वह ऑफिस के टेन्शन में होता है। उस वक्त पत्नी का यह कर्तव्य है कि वह उसे पूरे दिन की कहानी न सुनाकर उससे प्रेम भरा व्यवहार कर उसके मन को टेन्शन से मुक्त करें। वर्ना पति की हालत घट्टी में पीसे जाने वाले दानें की तरह हो जाती है। साथ ही वह यह भी जानती थी कि सास और बहू के बीच में हुए झगड़े का समाधान किसी भी बेटे के पास नहीं होता। यदि इन दोनों के झगड़े के बीच में बेटा फँस जाए तो वह इतना चिड़चिड़ा हो जाता है कि उसे वह घर नरक जैसा दिखने लगता है। वह ऐसा सोचता है कि इस घर को छोड़कर जहाँ मुझे परम शांति मिलती हो ऐसे स्थान पर चला जाऊँ । मोक्षा इन सब परिस्थितियों को समझने के कारण अपने पर बीती कोई भी बात वह विवेक को नहीं बताती थी।
एक सप्ताह तो ऐसे ही सास बहू की खीट-पिट में बीत गया। एक दिन मौका देखकर प्रशांत ने (विवेक के पिता) विवेक को मोक्षा के सुबह का ठंडा खाना खाने की सारी बात बता दी। यह सुनकर विवेक चौंक गया। तब प्रशांत ने उसे अलग घर लेने की सलाह दी। ताकि विवेक-मोक्षा का जीवन शांति से गुजर सके। इसी बीच मोक्षा कुछ दिनों के लिए पियर चली गई। तीन-चार दिन तो वह अपनी माँ को कुछ नहीं बताती। लेकिन एक दिन -