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________________ ये क्या तुम्हारे पैर पर फोले हो गए है? तुमने सुबह बताया क्यों नहीं कि तुम्हारा पैर भी इतना जल गया है। मोक्षा : बस यूँ ही, आप सुबह मेरे कारण नाश्ता करके नहीं गए, इसलिए मैंने भी नहीं खाया। विवेक : मोक्षा! तुमने टिफिन भेजा था ना। मैंने सुबह का खाना खा लिया था। तो फिर तुमने खाना क्यों नहीं खाया? और तुमने इस पर बरनॉल लगाया या नहीं? (मोक्षा ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया।) विवेक : रुको, मैं अभी डॉक्टर को बुलाता हूँ। मोक्षा : नहीं प्लीज़! आप डॉक्टर को मत बुलाना। नहीं तो घर में फिर एक नया हंगामा शुरू हो जायेगा। विवेक : कब तक तुम मम्मी से डरती रहोगी। अपनी हालत देखो, शादी के बाद कितनी पतली हो गई हो। कल पियर जाओगी तो वहाँ क्या जवाब दोगी? ससुराल में ठीक से नहीं रखते क्या ? मोक्षा! मैं भी रोज़-रोज़ की इस किट-किट से तंग आ गया हूँ। मम्मी का स्वभाव तो बदलेगा नहीं और उसके पीछे हमारी जिंदगी खराब हो जायेगी। इससे अच्छा तो हम मम्मी से अलग जाकर रहें। मोक्षा : ये आप क्या कह रहे हो ? मम्मी से अलग ? विवेक : हाँ मोक्षा! अब इसका समाधान यही है। हम इसी शहर में कहीं आस-पास छोटा-सा फ्लेट ले लेंगे और हम ज्यादा दूर तो नहीं जा रहे हैं। मम्मी-पापा के पास आते-जाते रहेंगे। बस मैंने फैसला कर दिया है, मैं तुम्हें और रोता हुआ नहीं देख सकता। पापा मेरी बात समझ जायेंगे, मैं जल्दी ही उनसे बात करता हूँ। मोक्षा : पर एक बार मेरी बात तो सुनिए! विवेक : नहीं मुझे कुछ नहीं सुनना। (इस प्रकार विवेक ने मोक्षा को बहुत समझाकर मोक्षा को भी मना लिया। दूसरे दिन ..शाम 5 बजे) सुशीला : मोक्षा! मेरे पैर बहुत दर्द कर रहे हैं जरा दबा देना। मोक्षा : मम्मी! आपको तो पता है कि मुझे रात्रिभोजन त्याग है और चउविहार का समय होने आया है। आप कहे तो मैं पहले चउविहार करके फिर आपके पैर दबा दूंगी। सुशीला : हाँ, हाँ, खाना कहीं भागे थोड़े ही जा रहा है। पहले पैर दबा दे फिर खा लेना। मोक्षा : मम्मी! अभी तक खाना बनाना भी बाकी है। बनाने में भी टाईम लग जायेगा। मैं 15 मिनिट में बनाकर खाकर आती हूँ। सुशीला : गरम खाने की इतनी क्या आदत है। एक दिन सुबह का खायेगी तो मर नहीं जायेगी। फिर रोज-रोज दो-दो बार गैस जलाना पड़ता है। आज गैस कितना महँगा हो गया है। तुम अब अपने पियर नहीं हो कि जब
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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