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प्रशांत: ये इस घर में क्या हो रहा है ?
सुशीला : अजी ! आप तो चुप ही रहिए। आप इसमें ना पड़े तो ही अच्छा है। देख बेटा देख, कितना जला दिया विधि का पैर ।
विवेक : मॉम! क्यों छोटी-सी बात को इतना बड़ा बना रही हो ?
सुशीला : हाँ-हाँ ! तेरे लिए तो ये छोटी-सी बात है । कल जो इस महारानी का पैर जल जाता तो पूरे घर को सिर पर उठा लेता और तेरी अपनी बहन का पैर जल गया तो छोटी-सी बात ।
विवेक : मॉम! आप जानो और ये जाने ....
(ऐसा कहकर विवेक नाश्ता किए बिना ही ऑफिस चला गया। मोक्षा उसके पीछे गई पर तब तक विवेक कार में बैठकर चला गया था। मोक्षा ने भी उसके बाद पूरे दिन कुछ नहीं खाया। शाम को जब विवेक ऑफिस से घर आया तब ... )
सुशीला : आ गया मेरा बेटा! सुबह से नाश्ता नहीं किया। थक गया होगा।
विवेक : माँ, विधि का पैर कैसा है ?
सुशीला : बस सुबह से दर्द के मारे रो रही थी। अभी जाकर कहीं नींद आई है। ले बेटा! तू खाना खा ले। विवेक : क्यों माँ! आज आप परोस रही हो ? मोक्षा कहाँ है ?
सुशीला : महारानीजी को सुबह थोड़ा कह क्या दिया, गुस्सा आ गया। सुबह से रुम में पड़ी है। कमरा बंद है। पता नहीं अंदर क्या कर रही है। सुबह से खाना नहीं खाया। चार बार तो मैंने जा-जाकर कह दिया। बेटा खाना खा लो, पर मेरी सुने कौन ?
(विवेक ने चुपचाप खाना खाया। लेकिन उसे अपनी माँ का स्वभाव पता होने के कारण उसे अपनी की बात पर विश्वास नहीं आया और वह अपने पिताजी के पास गया।)
विवेक : पापा! क्या आज मोक्षा सच में सुबह से कमरे में है।
प्रशांत :
बेटा ! ! तू अपनी माँ की बातों में मत आ । सुबह से बेचारी काम कर रही थी। अभी आधे घंटे पहले ही कमरे में गई है। तू ही जाकर उसकी हालत देख ले और हाँ, सुन... सुबह से बेचारी ने कुछ नहीं खाया है। (विवेक अपने कमरे में गया तब मोक्षा सोई हुई थी और उसकी आँखों में आँसू थे ।)
विवेक : मोक्षा! क्या हुआ तुम्हें ? पापा ने बताया तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया और तुम क्यों रो रही हो ? मोक्षा : कुछ नहीं, ऐसे ही मम्मी की याद आ गई।
विवेक : मोक्षा! तुम्हें तो तेज़ बुखार भी है और इतना बुखार होते हुए भी तुमने खाना क्यों नहीं खाया? अरे!
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