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________________ डॉली : तो क्या हुआ? बैंक से निकलवा दो। समीर : डॉली, वो सारे पैसे तो खर्च हो गये है। डॉली : क्या? खर्च हो गये। समीर! वो कोई 1000...2000 रुपये नहीं थे। लाखों रुपये लायी थी मैं अपने घर से। एक-डेढ़ साल में सारे खर्च हो गये? समीर : तुम्हें क्या लगता है, मैं झूठ बोल रहा हूँ ? इतनी बार घूमने गए, 5 स्टार होटल का खाना, 5 स्टार होटलों में रहना, जहाँ हम सोते है वहाँ का भाड़ा और तो और तुम्हारी बर्थ-डे पार्टी का खर्चा ही चालीस हज़ार का हो गया था। इतने खर्चों में सारे पैसे खत्म हो जाना सहज है और अब आगे भी तुम्हारे बच्चे के पालन पोषण के लिए पैसों की जरुरत तो होगी ही। और... (समीर बात पूरी करे उससे पहले ही) डॉली : समीर! ये “तुम्हारा बच्चा' क्या लगा रखा है ? क्या ये सिर्फ मेरा ही बच्चा है तुम्हारा नहीं? समीर : मैंने तो पहले ही गर्भपात करवाने को कहा था, पर तुम्हें ही जरुरत है इस बच्चे की। मुझे तो कोई जरुरत नहीं है। अब इस बच्चे के लिए जितने रुपयों की जरुरत है उसकी व्यवस्था तुम्हें ही करनी है। डॉली : समीर! मैं कहाँ जाऊँ पैसे लेने के लिए और कौन देगा मुझे पैसे? समीर : क्यों ? तुम्हारे पियर में क्या कमी है ? जाओ और थोड़े रुपये मांगकर ले आओ? डॉली : समीर! मैंने उस घर से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ दिया है। मैं मर जाऊँगी लेकिन उस घर में कदम नहीं रखूगी। समीर : ठीक है या तो कम पैसे में रहना सीखो या अपना इन्तज़ाम स्वयं करो। (इतना कहकर समीर वहाँ से चला गया और इस प्रकार ब्यूटी पार्लर की एक छोटी-सी बात से झगड़ा इतना बढ़ गया। अब रोज समीर इन्हीं झगड़ों के माध्यम से डॉली की जिंदगी में ज़हर घोलने लगा।) कसाई के हाथ में जब मुर्गी आती है तब कसाई उसे बहुत खिलाता-पिलाता है फिर भी मुर्गी के मन में तो यही भय होता है कि यह सब मुझे मारने के लिए ही हो रहा है, परन्तु प्यार का नाटक करने वाले जल्लादों के बीच डॉली की हालत उस मुर्गे से भी बदतर बन गई, क्योंकि उसे तो यह पता ही नहीं चला कि यह प्यार का नाटक उसके जीवन को बर्बाद करने के लिए किया गया है। अपने बर्थ-डे के दिन समीर के दो-चार गिफ्ट देखकर डॉली बहुत खुश हो गई थी। सचमुच कितनी बेवकूफ होती है लड़कियाँ। कोई यदि उन्हें दो-चार मीठी बातें बोल दे या दो-चार गिफ्ट लाकर दे दे , उनके लिए कुछ कर दे तो वह उनके पीछे पागल बन जाती है। आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियों की सारी होशियारी, चतुराई लड़कों की दो मीठी बातों के सामने खत्म हो जाती है और फिर वह मान बैठती है कि
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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