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तीक्ष्णता को धरती में छुपा देते है अर्थात् काँटी भी उल्टे हो जाते हैं। प्रभु किसी भी जीव के लिए कंटक रुप नहीं बने उनके मार्ग में भला काँटे भी विघ्न रुप कैसे बन सकते है ? १४, २०:: पंजस काम का * प्रभु महात्मय से प्रभावित होकर मार्ग के दोनों तरफ़ा के वृक्ष प्रभु का स्वागत करने के लिए अपनी डाली झुका-झुकाकर प्रभु को प्रणाम करते हैं, एकेन्द्रिय गिने जाने वाले वृक्ष भी जब प्रभु को देखकर प्रणाम करते हैं तो पंचेन्द्रिय मनुष्यों तथा देव प्रभु की सेवा में रहे तो इसमें कौन सी बड़ी बात हैं ? यह भी कर -- * जिस प्रकार देव और मनुष्य प्रभु को प्रदक्षिणा देते हैं उसी प्रकार तोता, सारस, मोर आदि पक्षी भी आनंदातिरेक होकर आकाश में प्रभु को प्रदक्षिणा लगाते हैं। यह देरन किसी कवि ने सुंदर कल्पना की है मानो, ये पक्षी प्रदक्षिणा के द्वारा प्रभु को सुकन नहीं दे रहे हो कि परिवार * प्रभु जहाँ विचरते है वहाँ सवा सौ योजल तक मास नहीं होती, मरकी भी नहीं होती। तीड़ नहीं होते, मूषक भी नहीं होते। काल नहीं पड़ता, दुष्काल भी नहीं पड़ता। अतिवृष्टि नहीं होती, अनावृष्टि भी नहीं होती। कोई स्वचक्र का भय नहीं और कोई परचक्र का भी भय नहीं। वैर नहीं विरोध भी नहीं। ये सांतों ‘इति' अर्थात् उपद्रव शीघ्र ही नाश हो जाते हैं। अहो! कैसा महान प्रभु का योग साम्राज्य! :
.. * विहार के समय प्रभु जिस भूमि पर विचरण करते है वहाँ आस-पास सौ योजन तक रहते सर्व जीवों के तमाम रोग शांत हो जाते हैं। इतना ही नहीं, छ: महीने पूर्व उत्पन्न हुए रोग भी नाश हो जाते हैं। तथा प्रभु के प्रभाव से छ: महीने तक उनमें नये रोगों की उत्पत्ति नहीं होती। वाह! कैसा अद्भुत प्रभु का अतिशय। :: * * प्रभु जब विहार करते है तल प्रभु के आगे आकाश में धर्मचक्र चलता है। जो सुवर्ण एवं रत्नों का बना होता है तथा एक हज़ार आराओं सुशोभित होता है। परमात्मा जब सिंहासन पर विराजित होते है तब प्रत्येक सिंहासन के आगे सुवर्ण कमल पर यह धर्मचक्र प्रतिष्ठित होता है। सूर्य से भी अधिक तेजस्वी, दसों दिशाओं को प्रकाशित करता यह धर्मचक्र सिध्यादृष्टि के लिए मानो कालचक्र है तो सम्यग् दृष्टि के लिए मानो अमृत के समान है। समाजमा निकाय * प्रभु के विहार के समय इन्द्रध्वज आकाश में प्रभु के साथ-साथ चलता है। एक हज़ार योजन की ऊँचाई वाला यह इन्द्रध्वज मोक्ष में ले जाने वाली सीढ़ी के सम्मान सुंदर दिखता है। सोने के दंड से बना यह वज़ हज़ारों छोटी-छोटी ध्वज़, पताकाओं तथा पवन से झुलती अनेक मफिसय घंटियों से शोभित होता है। प्रभु जब समवसरणा में प्रधारते है तब चारों दिशाओं में चार इन्द्रध्वज स्थापित हो जाते हैं।
किरात इस प्रकार अतिशयों से युक्त प्रभुजिब समवसरण में पधारते हैं तब ऐसा लगता है मानो, प्रभु के प्रभाव से संपूर्ण पृथ्वी माला-साल हो गई हो। किसान को
किया