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कामचोरी आदि नहीं करते। इसी प्रकार गुरु का सानिध्य होने मात्र से अप्रमत्त क्रिया होती है।
गुरुवंदन: विनय हेतु किया जाता है।"
एक खमासमणा देकर, इच्छा ..... सामायिक लेने की मुँहपत्ति पडिले हुँ ?
प्रत्येक आदेश के पूर्व में खमासमणा विनय के लिए दिया जाता है। क्रिया में जयणा की मुख्यता होने से मुँहपत्ति की पडिलेहन की जाती है।
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इच्छं गुरु के आदेश को स्वीकारने के लिए प्रत्येक आदेश के बाद 'इच्छ" कहा जाता है।'
एक खमासमणा, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाहुँ ?
गुरु से सामायिक करने की आज्ञा इस सूत्र से मांगी जाती है।'
गुरु कहे- सदिसावेह अर्थात् आज्ञा है
इच्छं आपकी आज्ञा स्वीकारता हूँ
सु
एक खमासमणा, इच्छा. सामायिक ठाऊँ?
इस आदेश से सामायिक में स्थिर होने की आज्ञा मांगी जाती है।
गुरु कहे - ठावेह अर्थात् स्थिर होने की आशा है।
इच्छं, मैं सामायिक में स्थिर होने की आज्ञा स्वीकारता हूँ ।
但
अथवा अपने
तर प्रकार तड़प -
हाथ जोड़कर नवकार ? सामायिक दंडक उच्चरने से पूर्व मंगल के लिए एक नवकार गिनी जाती है। गण इच्छकारी ... उच्चरावोजी : गुरु के पास सामायिक दंडक उच्चराने की प्रार्थना है। एक जा करेमि भंते : यदि गुरु हो तो करेमि भेते उनसे उच्चरें। उनके अभाव में विनय हेतीपाती पूर्व जिसने सामायिक ले ली हो उनसे उच्चरना चाहिए तथा कोई न हो तो स्वयं उच्च खमासमणा पूर्वक इंरियावहि सूत्र : खमारामजी विनय के लिए हो इरिया बाहयं सूत्र से मार्ग में जो कोई पानी की लाश जीव विराधना हुई हो उनका मिच्छामि दुक्कड़ दिया जाता है, क्योंकि जब तक सर्व जीव से क्षमा नहीं मांगते तब तक सामायिक मैं स्थिरता भी नहीं आती। इस सूत्र के द्वारा गुरु के समक्ष हमने पापों की आलोचना की किजिए कि प्रि तब गुरु ने एक लोगस्स का प्रायश्चित दिया ।
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तस्स उत्तरी : इसमें काउस्सग्ग करने के 4 हेतु बताये गये हैं।
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अन्नत्थ : इसमें काउस्सग्ग में कुछ छूट रखी गई है।
जि काउस्सग्ग : इरियावहियं में 25' श्वासोश्वास प्रमाण की काउस्सगंग होता है। लोगस्स सूत्र के प्रत्येक पद का प्रमाण एक श्वासोश्वास का गिना है, अर्थात् 'चंदेसु निम्मलयरा" तक 25 श्वासोश्वास होते हैं। जिन्हे प्लासि