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________________ ब्रह्म (पाँचवें) देवलोक तक 8वें देवलोक तक 12वें देवलोक तक ग्रैवेयक तक अनुत्तर तक जाते है। देव मरकर कहाँ तक जा सकते हैं? चरक/परिव्राजक पंचेन्द्रिय तिर्यंच श्रावक कट्टर क्रियापालक मिथ्यादृष्टि साधु अप्रमत्त साधु भगवंत दूसरे देवलोक तक के देव आठवें देवलोक तक के देव नवमें तथा उसके ऊपर के देव मात्र मनुष्य में ही उत्पन्न होते हैं। * अब भरत क्षेत्र में छेवटु संघयण होने के कारण मात्र चार देवलोक तक ही जा सकते है। * विशेष में कोई भी सम्यग् दृष्टि देव गर्भज मनुष्य में ही आते हैं एवं सम्यक्त्व की प्राप्ति के बाद मनुष्य वैमानिक देव का ही आयुष्य बांधते है। यदि किसी मनुष्य का पहले नरक का आयुष्य बंध हो गया हो और फिर क्षायिक सम्यक्त्व हो जाए तो नरक में भी जाते है। आयुष्य पहले न बांधा हो तो अवश्य वैमानिक ही जाते है। पृथ्वी, पानी एवं वनस्पति में जा सकते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच बन सकते हैं। प्र.: देव मनुष्यलोक में क्यों नहीं आते ? उ.: देवलोक में दिव्य प्रेम एवं भोगों में आसक्त होने के कारण एवं मनुष्य लोक की दुर्गन्ध 400-500 योजन तक ऊपर उछलने के कारण मनुष्यलोक में देव बिना कारण नहीं आते। प्र.: देव मनुष्य लोक में कब आते हैं ? उ.: तीर्थंकरों के पुण्य से आकर्षित देव प्रभु के 5 कल्याणकों में, ऋषि महात्माओं के तप के प्रभाव से, जन्मांतर के स्नेह अथवा द्वेष के कारण देव यहाँ आते हैं। देवलोक के सुख से भी देवों को धर्म का आकर्षण अधिक रहता है। अतः जो शुद्ध धर्म करते हैं उनको देव अवश्य सहाय करते हैं। बिमानों की संख्या तथा जिन भवन एवं जिन प्रतिमा की संख्या प्रथम देवलोक में 32 लाख विमान एवं 13 प्रतर है। श्रेणिबद्ध विमान गोल, त्रिकोण एवं चोरस है एवं कितने ही विमान बिखरे हुए पुष्प के समान स्वस्तिक आदि आकार वाले हैं। इसी प्रकार अन्य देवलोक में भी विमानों की स्थिति समझना चाहिए। सकल तीर्थ के अनुसार संख्या की गिनती : 037
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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