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१४ राजलाक रिड मिशिना
येयक
उसके बाद के तीन देवलोक (यानि 3,4,5) - घनवात (गाढ़ा पवन) के ऊपर है। उसके बाद के तीन देवलोक (यानि 6,7,8) - घनोदधि एवं घनवात पर है। उसके बाद के सभी देवलोक (9,10,11,12, ग्रै,अ) - आकाश में अद्धर है। _कल्पोपपन्न - जिन देवलोक में कल्प अर्थात् आचार की मर्यादा, स्वामी-सेवक भाव आदि है, वे कल्पोपपन्न कहे जाते हैं। भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष एवं 12 वैमानिक देवलोक तक कल्प की मर्यादा होने से ये सभी देवलोक कल्पोपपन्न है।शेष देवलोक कल्पातीत कहलाते है। कल्प की मर्यादा के आधार पर कल्प के दश प्रकार है - (1) इन्द्र - देवलोक के स्वामी। (2) सामानिक - स्वामी नहीं होने पर भी इन्द्र जैसी ऋद्धिवाले देव। (उ) त्रायस्त्रिंशत् - गुरु स्थानिक देव। (4) पारिषद्य - इन्द्रसभा के सभासद। (5) आत्मरक्षक - अंगरक्षक देव। (6) लोकपाल - कोतवाल के समान चोर से
रक्षा करने वाले देव। __(7) अनीकाधिपति - सेनापति देव।
(8) प्रकीर्णक - प्रजा जैसे देव। (9) आभियोगिक - नौकर जैसे देव। (10) किल्बिषिक - चंडाल जैसे देव।
इनमें से व्यंतर एवं ज्योतिष देव में लोकपाल एवं त्रायस्त्रिंशत् जाति के देव नहीं होते है। 14 रागलोक के चित्रानुसार - इनमें नीचे के लोकांत से ऊपर तरफ के 9 वें राज में 1-2 देवलोक आमने-सामने है तथा इनके नीचे प्रथम किल्बिषिक है। 10 वें राज में 3-4 देवलोक आमने-सामने है तथा तीसरे देवलोक के नीचे दूसरा किल्बिषिक है। उसके ऊपर 11 वें राज में 5-6 देवलोक तथा 12 वें राजलोक में 7-8 देवलोक
ऊर्ध्वलोक
लोक
कित्यिधिक चर-स्थिर ज्योतिषक द्वीप समट नरक
अधोलोक
उसलार
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