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दिखाई देते हैं।
सूर्य के नीचे केतु ग्रह एवं चन्द्र से चार अंगुल नीचे राहु ग्रह चलता है। यह राहु ग्रह दो प्रकार का है। एक पर्व राहु, दूसरा नित्य राहु।
पर्व राहु पूर्णिमा या अमावस्या के दिन अचानक चन्द्र या सूर्य को ग्रसित करता है। अर्थात् इसका विमान एकदम काला होने से तथा चन्द्र एवं सूर्य की आड़ में आ जाने से चन्द्र एवं सूर्य का ग्रहण हुआ कहा जाता है। सूर्यग्रहण अमावस को एवं चन्द्रग्रहण पूनम को होता है। जघन्य से सूर्य-चन्द्र ग्रहण 6 महीने से होता है। उत्कृष्ट से चन्द्रग्रहण 42 वर्ष में और सूर्य ग्रहण 48 वर्ष में होता है। एक चन्द्र के परिवार में 66,975 क्रोड तारे होते हैं।
नित्य राह का विमान भी काला है। कृष्ण पक्ष में नित्य राह का विमान चन्द्र के विमान के समकक्ष में थोड़ा-थोड़ा आता जाता है। अमावस के दिन बराबर चन्द्र के पूरे विमान के नीचे आ जाने से चन्द्र का पूरा विमान ढक जाता है। फिर शुक्ल पक्ष में गति की तरतमता के कारण चन्द्र का विमान दिखाई देता है। पूनम के दिन नित्य राहु का विमान संपूर्ण दूर हो जाने से पूर्ण (पूरा) चंद्र दिखाई देता है।
, वास्तव में सूर्य से चन्द्र का विमान बड़ा है। फिर भी चन्द्र का विमान अधिक ऊँचाई पर होने से छोटा दिखाई देता है। क्रमश: चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा गति में ज्यादा और ऋद्धि में कम है। एक सूर्य अथवा चन्द्र को जंबूद्वीप का चक्कर लगाने में 60 मुहूर्त (2 दिन) लगते है। लवण समुद्र, धातकी खंड आदि के सूर्य चन्द्र भी 60 मुहूर्त में सम्पूर्ण मांडला फिरने से उनकी गति क्रमश: तीव्र-तीव्र समझनी।
_ ऊर्ध्वलोक देवों के चार निकाय (प्रकार) होते हैं - (1) भवनपति निकाय
(2) व्यंतर निकाय (3) ज्योतिष निकाय
(4)वैमानिक निकाय उनमें से वैमानिक निकाय के देव ऊर्ध्वलोक के विमान में रहते हैं। ऊर्ध्वलोक में 12 देवलोक, 3 किल्बिषिक, 9 लोकांतिक, 9 ग्रैवेयक, 5 अनुत्तर एवं सिद्धशीला है। 12 देवलोक के नाम - (1) सौधर्म (2) ईशान (3) सनत्कुमार (4) माहेन्द्र (5) ब्रह्मलोक (6) लांतक (7) महाशुक्र (8) सहस्रार (9) आनत (10) प्राणत (11) आरण (12) अच्युत। इनदेवलोक के आधार: पहले दो देवलोक
-- घनोदधि (गाढ़ा पानी) के ऊपर है।