________________
दक्षिण दिशा में अतिपांडुकंबला नामक शिला- इस पर एक सिंहासन है। भरत क्षेत्र में जन्मे तीर्थंकर परमात्मा का अभिषेक इस शिला पर होता है।
उत्तर
ऐरावत
सापांडुकवन
पश्चिम
शिला
विजय
विजय
विजय क
चूलिका
विजय
विजय
ऐरावत
सिंहासन
भरत
दक्षिण
भरतर
O) ज्योतिष चक्र . मेरु पर्वत के मूल भाग में 8 रुचक प्रदेश है। यह चौदह राजलोक का मध्य भाग है। इसे समभूतला कहते हैं। यहाँ से 790 योजन ऊपर जाने पर तारा मंडल, 800 योजन पर सूर्य, 880 योजन पर चन्द्र, 884 योजन पर 28 नक्षत्र है, 888 योजन पर बुध नामक ग्रह है , 891 योजन पर शुक्र ग्रह है, 894 योजन पर गुरु ग्रह है, 897 योजन पर मंगल ग्रह है एवं 900 योजन पर शनि ग्रह है।
__इस प्रकार 790 से 900 योजन तक के कुल 110 योजन में सम्पूर्ण ज्योतिष चक्र रहा हुआ है। यह ज्योतिष चक्र (चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा) असंख्य द्वीप समुद्र सभी में है। उसमें से अढ़ीद्वीप-समुद्र रूप जो मनुष्य क्षेत्र है, उसमें रहा हुआ ज्योतिष चक्र मेरु पर्वत से 1121 यो. दूर रहकर मेरु पर्वत को निरंतर प्रदक्षिणा लगाता है, अत: यह 5 चर ज्योतिष कहलाते हैं एवं अढ़ी द्वीप के बाहर जो ज्योतिष चक्र है वह अपने स्थान पर स्थिर रहने के कारण वे 5 अचर (स्थिर) ज्योतिष कहलाते हैं।
हमें बाहर से जो सूर्य चन्द्रादि दिखाई देते हैं, ये सब ज्योतिष देवों के विमान है। ये विमान आधी मोसंबी के समान आकार वाले, स्फटिक रत्नमय अतिरमणीय एवं बड़े हैं। फिर भी दूर होने के कारण छोटे