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________________ पाँचवी नरक में - ग्रह समान छट्ठी नरक में - नक्षत्र समान सातवीं नरक में - तारा समान नोट : 1. नरक में अवधि अथवा विभंग ज्ञान होता है। 2. नारकी जीवों का वैक्रिय शरीर होता है। 3. आसक्ति पूर्वक किये गये कार्यों के लिए अधिक कष्ट सहन करने का स्थान नरक है। 4. वर्तमान में छेवटु संघयण होने के कारण दूसरी नरक तक ही जा सकते है। 5. नरक में से निकलकर जीव पंचेन्द्रिय तिर्यंच या मनुष्य ही बनता हैं। 6. सातवीं नरक से निकले हुए जीव पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही बनते हैं। प्रथम नरक पृथ्वी 1,80,000 योजन की है। (A) मेरू 10 यो. (G) प्रथम नरक पृथ्वी 780 यो. (H) 8 वाणव्यंतर +10 यो. (G) (B) ऊपर के 1,000 योजन 800 यो. (F) 8 व्यंतर के आवास IP-100 यो. (E) 100 यो. (E) 1,78,000 योजन (C) | 10 भवनपति और 15 परमाधामी के आवास (D) नीचे के 1,000 योजन (B) | सम्पूर्ण 1,80,000 योजन 027
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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