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परमाधामी देव
परम अधार्मिक होने से इन्हें परमाधामी कहा जाता है। ये जीव भव्य होते है । ये परमाधामी अपने पूर्वभव में क्रूर कर्मी, संक्लिष्ट अध्यवसायी, पाप कर्म में ही आनंद का अनुभव करने वाले होते हैं। पंचाग्निरूप मिथ्या कष्ट क्रिया वाले अज्ञानतप करने से इनको ऐसा अवतार मिलता है। नारकी जीवों को दुःख देने में, उन पर प्रहार करने में, तथा दुःख से उन्हें रोता देखकर परमाधामी अत्यन्त खुश होते हैं। आनंद के अतिरेक में तालियाँ बजाकर अट्टहास करते है क्योंकि नारकी को दुःख देने में इन्हें जो आनंद आता है वह आनंद उन्हें देवलोक के नाटकादि देखने में भी नहीं आता। नारकी जीवों के दुःख में आनंद मानने के कारण, महाकर्म बांधकर ये परमाधामी देव मरकर अंडगोलिक जल मनुष्य के रूप में उत्पन्न होते हैं।
ये अंडगोलिक मनुष्य वज्रऋषभनाराच संघयण वाले महापराक्रमी, मांस-मदिरा और स्त्रियों के महालोलुपी होते हैं। इनके शरीर में एक गोली होती है जिसके प्रभाव से जल में रहने वाले छोटे-बड़े जीवजंतु इनके पास में नहीं आते। रत्न के व्यापारी समुद्र की गहराई से रत्न आदि लाने के लिए जल में रहने वाले जीवों से अपनी रक्षा के लिए ऐसी अण्डगोलियाँ प्राप्त करने की चाह में इन्हें पकड़ने का प्रयास करते हैं।
ये अण्डगोलिक मनुष्य अत्यन्त शक्तिशाली होने से साधारण मनुष्य को पकड़कर कच्चा ही खा लेते हैं। इन्हें पकड़ने के लिए रत्न के व्यापारी एक वज्रमय घट्टी बनाते हैं जो यंत्र से चलती है। इस घट्टी में एक बार फँसने के बाद ये अण्डगोलिक बच नहीं पाते। इस घट्टी के दो पट्ट होते है, व्यापारी इस वज्र की घट्टी के दोनों पट्ट खोलकर उसे एक जगह रख देते हैं एवं जहाँ ये अण्डगोलिक रहते हैं उस स्थान से लेकर घट्टी तक शराब, मांस आदि भोग सामग्री बिछा देते हैं। घट्टी के अंदर भी खूब अधिक मांस, शराब रख देते हैं।
ये अण्डगोलिक मांस तथा शराब को देखकर आनंद मग्न होते हुए उन्हें खाते-खाते कुछ दिनों में घट्टी में घुस जाते हैं तब वे व्यापारी बटन दबाकर घट्टी के पट्ट का दरवाज़ा बंद कर देते हैं एवं घट्टी शुरु कर देते हैं। अण्डगोलिक उसमें पीसने लगता है। उसकी पीड़ा का कोई पार नहीं रहता। पीड़ा से वह चिल्लाने लगता है। उसकी चीख से सारा वातावरण गूंजने लगता है । उसकी हड्डियाँ मजबूत होने से जल्दी टूटती नहीं। परिणामत: उसे छ: महीनें तक घट्टी में पीला जाता है। छ: महीनें तक पीलने से अंत में उसका शरीर होता है
महाघोरातिघोर नारकीय यातनाएँ भोगता हुआ अण्डगोलिक अति रौद्रध्यान में मरकर नरक में उत्पन्न होता है। “जैसी करनी वैसी भरनी" इस कहावतानुसार दूसरों को दुःख देने के कारण स्वयं को दुःख भोगना पड़ता है।
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