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________________ कहते है कि हम सतत जिसका चिंतन करते है हम उसी के समान हो जाते हैं। इसी के अनुसार सुलसा के रग-रग में परमात्मा बस गए थे, अत: उसने भी तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। आयुष्य पूर्ण कर वह देवलोक में गई। वहाँ से इसी भरत क्षेत्र में अगली चौबीसी में निर्मम नामक पन्द्रहवें तीर्थंकर बनकर मोक्ष पद प्राप्त करेगी। बाहड़ मंत्री बाहड़ मंत्री के पिता श्री उदयन मंत्री थे। अपने जीवन के अंतिम समय में वे बहुत दुःखी थे। उनके दुःख का कारण था कि उन्होंने शत्रुंजय गिरिराज के जीर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने का निर्णय किया था। लेकिन मौत का पैगाम जल्दी आने से वे जीर्णोद्धार करा नहीं सके। अपने पिता को इस तरह दुःखी देखकर बाहड़ ने उसका कारण पूछा। पिताजी की अंतर जिज्ञासा देख बाहड़ ने अपने पिताजी को वचन दिया कि वह अवश्य ही जीर्णोद्धार करवाएगा । "मेरा पुत्र बाहड़ शत्रुंजय गिरिराज पर अवश्य जीर्णोद्धार करवायेगा”। ऐसी • आश को लेकर उन्होंने शांति से समाधि-मरण को प्राप्त किया। पिताजी की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने के लिए बाहड़ ने शत्रुंजय के जीर्ण मंदिर को नया पाषाणमय बनाने का निश्चय किया एवं जब तक मंदिर की नींव (शिलान्यास ) न डाली जाए तब तक ब्रह्मचर्य का पालन, प्रतिदिन एकासणा, भूमि शयन एवं मुखवास का त्याग ऐसा अभिग्रह लिया । बाहड़ मंत्री ने संघ के साथ शत्रुंजय तीर्थ जाने का विचार किया। दूसरे दिन ही पाटण में घोषणा करवाई कि "बाहड़ मंत्री शत्रुंजय संघ लेकर जा रहे हैं। जिनको आने की इच्छा हो वे आ सकते हैं। लेकिन उन्हें इन 6 नियमों का पालन करना पड़ेगा। (1) ब्रह्मचर्य का पालन (2) भूमि शयन (3) दिन में एक बार ही खाना (एकासणा) (4) समकितधारी बनकर रहना (5) सचित्त वस्तु का त्याग (6) पद यात्रा (पैदल यात्रा)। सब यात्रालुओं के लिए भोजन आदि की व्यवस्था बाहड़ मंत्री करेंगे”। इस.घोषणा को सुनकर धर्मप्रेमी लोग आनंद विभोर हो गए और हज़ारों नर-नारियाँ शत्रुंजय तीर्थ यात्रा में शामिल हुए। शुभ मुहूर्त में मंगल प्रयाण हुआ। हर एक गाँव में यात्रिकों का स्वागत हुआ और हर एक गाँव से दूसरे यात्रिक भी शामिल होते गए। हर एक गाँव में महामंत्री उदार मन से दान देते और जिन मंदिरों में अहोभाव से पूजा भक्ति करते । इस यात्रा का उद्देश्य तो सब लोग जानते ही थे, कि पिता उदयन मंत्री की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने हेतु बाहड़ मंत्री गिरिराज पर नया भव्य मंदिर बनवाने के लिए संघ सहित जा रहे हैं। संघ गिरिराज की पवित्र छाया में पहुँच गया। संघ सहित महामंत्री शत्रुंजय पर्वत पर चढ़े। हज़ारों पात्रिक बुलंद आवाज़ से आदिनाथ दादा की जयनाद करने लगे। सब लोग भाव पूर्वक दर्शन-पूजन 019
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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