________________
मालिक आप ही हो। आप इसे प्रेम से वापस ले जाओ, " परंतु भीमा ने सोना मोहरें लेने से इन्कार कर दिया। महामंत्री ने पुन: उसे समझाया, लेकिन भीमा मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था। एकाएक वहाँ कपर्दी यक्ष प्रगट हुए।
यक्षदेव ने कहा - “भीमा! यह धन तुझे तेरे पुण्य से मिला है, तेरे अशुभ कर्म अब पूरे हो गये हैं। यह धन मैं तुझे प्रेम से दे रहा हूँ । तुम ले लो " । इतना कहकर कपर्दी यक्ष अदृश्य हो गए। भीमा भी ज्यादा मना न कर सका। महामंत्री के आतिथ्य को स्वीकार कर आखिर भीमा सोना मोहरों से भरा कलश लेकर अपने घर गया। घर आकर यक्ष की सारी बातें पत्नी से कही। तब पत्नी ने खुश होकर कहा- "हे स्वामी ! श्री आदिनाथ भगवान का प्रभाव अचिंत्य है। इसमें कोई शंका नहीं है। साथ ही आपकी व्रत दृढ़ता का यह फल है।"
सती सुलसा
प्रभु महावीर के शासन काल में राजगृही नगरी में प्रभु के परम भक्त श्रेणिक राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में नाग नामक सारथी था । उसे श्रेष्ठ शीलादि गुणों से सुशोभित तथा प्रभु वीर के प्रति अत्यंत श्रद्धावान ऐसी सुलसा नामक़ पत्नी थी।
एक बार श्री महावीर प्रभु चंपानगरी में पधारें । उसी नगरी से अंबड परिव्राजक राजगृही नगरी में जा रहा था। उसने प्रभु महावीर को वंदन करके विनंती की कि, "हे प्रभु! मैं आज राजगृही जा रहा हूँ। यदि आपको वहाँ कोई कार्य हो तो फरमायें । " तब भगवान ने कहा - " वहाँ रहने वाली सुलसा श्राविका को धर्मलाभ कहना।” परिव्राजक वहाँ से निकलकर राजगृही नगरी आया । वहाँ पूछताछ करने पर उसे पता चला कि यह सुलसा नाग सारथी की पत्नी है। तब उसके आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसने सोचा कि परमात्मा ने श्रेणिक राजा, अभयकुमारादि आदि किसी को याद नहीं कर एक सामान्य सारथी की स्त्री को धर्मलाभ कहलवाया है। अत: वह वाकई दृढधर्मी होगी, परंतु एक बार तो मुझे उसकी परीक्षा करनी ही चाहिए।
इस प्रकार सोचकर वह पहले दिन राजगृही नगरी के पूर्व दिशा के दरवाज़े पर अपने तप बल से ब्रह्मा का रूप लेकर बैठ गया। यह देख नगर के सभी लोग ब्रह्माजी के दर्शन हेतु वहाँ जाने लगे। मात्र एक सुलसा श्राविका ही नहीं गई। यह देखकर दूसरे दिन उसने दूसरे दरवाज़े पर महादेव का रूप धारण किया। साक्षात् महादेवजी को नगरी में आए देखकर लोगों के टोले के टोले उनके दर्शनार्थ जाने लगे। पर सुलसा का सम्यक्त्व दृढ़ था इसलिए वह महादेव के दर्शन करने नहीं गई। अंबड ने तीसरे दिन पुनः तीसरे दरवाज़े पर विष्णु का रूप धारण किया । पूर्ववत् लोगों का सैलाब वहाँ उमड़ने लगा, पर उनके दर्शन के लिए भी नहीं जाने वाली एक मात्र सुलसा ही थी । यह देख अंबड ने हिम्मत हारे बिना अपनी अंतिम चाल चली। उसने सोचा कि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव आदि तो अन्य धर्म के देव है। इसलिए सुलसा उनके दर्शन करने नहीं आई
017