________________
सम्पूर्ण संपत्ति है। अपनी सम्पूर्ण कमाई ये दान में दे रहा है। हम सब भी दान करते हैं पर कैसा ? लाख हो तो पाँच-दस हज़ार का, पर ये भीमा अपने पास कुछ रखे बिना, कल की कुछ चिंता किए बिना, दादा के चरणों में अपनी महामूल्यवान सम्पूर्ण संपत्ति दे रहा है। मेरी बुद्धि से तो भीमा का दान हम सबसे अनुपम एवं अद्वितीय है, " भीमा कुंडलिया की प्रभु भक्ति और मंत्रीश्वर की उदारता से सभी गद् गद् हो उठे।
-
"धन्य है भीमा को ! धन्य है ! धन्य है ! महामंत्रीश्वर को " ऐसे प्रचंड हर्ष के साथ सभा समाप्त हुई। भीमा भी अपने गाँव गया और हँसते-हँसते उसने घर में प्रवेश किया। घर में प्रवेश करते ही उसकी पत्नी ने सवाल किया - "अहो ! क्या बात है ? आज बहुत खुश दिख रहे हो ?"
भीमा - "प्रिये ! मेरी खुशी का राज तुझे किस तरह बताऊँ ? आज तो मेरा जीवन ही धन्य बन गया । " पत्नी - “ऐसा क्या हो गया ? मुझे भी तो कहो। " भीमा ने हर्षित मन से सब कुछ कह दिया, बात पूरी होने से पहले ही पत्नी गुस्से में बोल उठी- “एक तो पूरी कमाई आज दान में दे दी, और कहते हो धन्य बन गया, कैसे ? आपको घर का विचार भी नहीं आया, शाम को क्या खायेंगे ?"
फिर गुस्से में ही गालियाँ देती हुई गाय दोहने चली गई। उस समय गाय का खूंटा ढीला होने से निकल गया। वह पुनः खीले को जैसे ही जमीन में गाढ़ने लगी, वैसे ही खूंटा किसी बर्तन से टकराया हो, ऐसा उसे प्रतीत हुआ। उसने जमीन खोदी तो अंदर से उसे सोना मोहरों से भरा कलश मिला। कलश देखते ही उसका गुस्सा ठंडा हो गया और कलश लेकर वह भीमा के पास आई। तथा भीमा को सारी बात बतायी।
सोना मोहरों से भरे कलश को देखते ही भीमा ने कहा- "देखा ! दादा का कैसा चमत्कार, कहाँ सात पैसे और कहाँ पर मोहरों से भरा हुआ ये सोने का कलश।”
उसकी पत्नी भी बहुत खुश होकर बोली - "इन मोहरों से अपनी गरीबी दूर हो जाएगी।”
इस पर भीमा ने कहा “ नहीं, जो चीज़ अपनी नहीं है, उसे लेने की मेरी प्रतिज्ञा को क्या तू नहीं जानती। ये सोना मोहरे अपनी नहीं है" उसकी पत्नी ने कहा - "तो क्या करोगे इन सोना मोहरों का ?" भीमा ने उत्तर देते हुए कहा - "जाकर महामंत्री को देकर आऊँगा, महामंत्री को इसका जो करना है वह करेंगे।"
दूसरे दिन सुवर्ण कलश लेकर भीमा बाहड़ मंत्री के पास आया। उसने सोना मोहरों के साथ सुवर्ण कलश भी उनके चरणों में रख दिया और उसके साथ जो हुआ वह सब कुछ बता दिया। बाहड़ मंत्री भीमा की नि:स्पृहता एवं व्रत पालन की दृढ़ता को देखकर अहोभाव से स्तब्ध रह गए। उन्होंने कहा- “धन्य है भीमाजी! धन्य है आपके व्रतपालन की दृढ़ता को । सच में आप महाश्रावक हो ! इन सोना मोहरों पर आप का ही अधिकार है, आपको ये मोहरें आपके घर से मिली है, आपके पुण्योदय से ही मिली है, अत: इसके
016