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है। सब अपने-अपने दान की रकम मुनीमजी के पास लिखवा दे।"
घोषणा पूरी होते ही दातार अपने दान की रकम लिखवाने लगे। कोई दो लाख, कोई एक लाख, कोई पचास हज़ार। दातारों की दान भावना और जिनभक्ति को देखकर महामंत्री का दिल खुश हो गया, इतने में उनकी नज़र सभा के एक ओर खड़े एक व्यक्ति पर पड़ी। जो इस भीड़ में अंदर आने का प्रयत्न कर रहा था। पर उसके मैले कपड़े देखकर कोई उसे अंदर नहीं आने दे रहा था। बाहड़ मंत्री ने देखा कि इस आगंतुक के दिल में भी दान देने की भावना उछल रही है। इसलिए महामंत्री ने एक सेवक को भेजकर उसे अपने पास बुलवाया, उसने आकर प्रणाम किया।
मंत्री ने पूछा - "पुण्यशाली ! तुम्हारा नाम क्या है ? और कहाँ रहते हो ?" भीमा - "मेरा नाम भीमा कुंडलिया है। यही पास के गाँव में रहता हूँ।" मंत्री पूरी पूछताछ करते है “क्या धंधा करते हो ?'
भीमा - “महामंत्री जी ! पुण्यहीन हूँ। अशुभकर्म के बंधन अभी टूटे नहीं है। मेहनत मजदूरी करता हूँ। घर में एक गाय पाल रखी है उससे हमारा (पति-पत्नी दोनों का) जीवन निर्वाह हो जाता है।"
मंत्री- “यहाँ पर क्यों आये हो ?'
भीमा- “बाज़ार में घी बेचते-बेचते यह समाचार मिले कि गुजरात के महामंत्री विशाल संघ लेकर यहाँ पधारे है। यह सुनकर मुझे भी यात्रा करने के भाव आए । यात्रा करके आने के बाद पता चला कि आप गिरिराज पर भव्य जिन मन्दिर का नवनिर्माण करा रहे हो। इससे मुझे भी भावना हुई कि मैं भी कुछ ....."
भीमा आगे कुछ न बोल सका। बाहड़ मंत्री ने प्रेम से कहा- “भीमाजी! दान देने में शरमाने जैसी कोई बात नहीं है। तुमको जितना दान करना है उतना प्रेम से करो।"
भीमा - "मंत्रीश्वर ! मेरे पास एक रूपये और सात पैसे थे। उसमें से एक रूपये के पुष्प खरीदकर भगवान आदिनाथ को चढ़ाए, अब मेरे पास मात्र सात पैसे बचे है। इतनी छोटी-सी रकम आप स्वीकार करेंगे तो मैं स्वयं को भाग्यशाली समझूगा।” इतना कहते ही भीमा की आँखों में आँसू आ गए। बाहड़ की
आँखें भी भीमा की भावना देखकर गिली हो गई तथा प्रेम से उसके सात पैसे स्वीकार कर लिए और मुनिमजी से कहा -
"मुनीमजी ! दातारों की नामावली में सबसे पहला नाम भीमा कुंडलिया का लिखो।" महामंत्री की इस घोषणा को सुनकर सभा में घोर सन्नाटा छा गया। सब सोचने लगे कि इस भीमा ने कितना दान लिखाया होगा, जिससे इसका नाम दान की नामावली में सबसे पहला है।
तब भीमा के सात पैसों को हाथ में बताते हुए महामंत्री ने कहा - "सभाजनों! देखों, भीमा की यह