SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सबके मस्तक झुक गये। राजा कुमारपाल का संघ वहाँ से प्रस्थान कर जब गिरनार पहुँचा, तब वहाँ पर भी तीर्थमाला का चढ़ावा लेकर जगड़ ने सवा करोड़ का दूसरा माणिक्य भी अर्पण कर दिया। शाबाश जगड़ ! धन्य है आपकी माता को एवं धन्य है आपके पिता को ! ) आरस या वारस विमलमंत्री व श्रीदेवी इस दंपति ने आबू पर जिनालय का निर्माण कार्य शुरु करवाया, परन्तु मंदिर दिन में जितना तैयार होता, उतना रात में पुन: गिर पड़ता। विमलमंत्री ने अट्ठम तप करके अंबिका देवी को प्रत्यक्ष किया और इस विघ्न के निवारण हेतु देवी से प्रार्थना की। देवी - “विमल ! तेरे नसीब में 'आरस या वारस' अर्थात् 'प्रभु मंदिर या पुत्र' दोनों में से एक ही है। यदि मंदिर चाहिए तो पुत्र नहीं मिलेगा।" देवी की बात सुनकर विमलशाह सोच में पड़ गये। उन्होंने देवी से कहा- “माँ ! इस विषय के लिए मेरी पत्नी श्रीदेवी से पूछनां पड़ेगा। मैं उससे पूछकर जवाब दूंगा" देवी - “आगामी भादरवा सुदी चौदस के दिन अडाजन गाँव में मेरे धाम पर तुम दोनों दंपति आ जाना और ठीक मध्यरात्री में 7 श्रीफल चढ़ाकर जो इच्छा हो वह माँग लेना। मैं तुम्हें वरदान दूंगी। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। ___ विमलशाह ने घर आकर सारी बात श्रीदेवी से कही। दोनों दंपति ने सोच विचार कर निर्णय लिया और भादरवा सुदी चौदस के दिन ठीक शाम के पाँच बजे अड़ाजन कुलदेवी के धाम पर पहुँच गये। मध्यरात्री होने में काफी समय था, इसलिए दोनों एक पेड़ के नीचे समय बिताने के लिए बैठ गये। उस पेड़ के पास एक बावड़ी थी। दोनों को प्यास लगी। तब विमलशाह ने अपने पास रहे लोटे को लेकर बावड़ी में उतरने लगे। इतने में आवाज़ आई- “ठहरो! पानी के पैसे देकर फिर पानी लेना" ___यह सुनकर विमलशाह चौंक गये। पीछे मुड़कर देखा तो एक आदमी खड़ा था। उसने कहा - "मेरे दादा ने यह परब बंधाई है। देखो इस तख्ती पर क्या लिखा है। पानी के पैसे देकर पानी ले।" विमलशाह - "अरे भाई! पानी के भी क्या पैसे लगते है?" आदमी : “ मेरे बाप-दादा की यह बावड़ी है, इसलिए अब इस पर मेरी मालिकी है। यदि इसमें से आपको पानी लेना है तो पैसे देने ही पड़ेंगे।" आखिर में विमलशाह ने पैसे देकर पानी भरा। इस घटना से उनका मन अशांत हो गया। विचार करने लगे कि “ऐसा भी होता होगा क्या ? किसी पुण्यशाली ने सुकृत करने के लिए यह बावड़ी बनाई होगी और (013)
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy