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गया। पहला चूंट लेते ही राजा थू-थू करने लगा। ब्राह्मण वहाँ से भाग गये। करोड़ों रूपयों के व्यय से पेथड़शाह ने वहाँ सुविशाल जिनालय बनवाया। (कालक्रम से थोड़ा जीर्ण, मुस्लिमों के आक्रमण का शिकार बना हुआ व जैनों द्वारा ही उपेक्षित बना हुआ वह मन्दिर आज भी देवगिरि (दौलताबाद-औरंगाबाद) में खंडहर के रूप में विद्यमान है। भारत सरकार ने उसे हिन्दमाता मन्दिर घोषित करके केन्द्रस्थान में हिंदमाता का स्टेच्यू स्थापित किया है। मन्दिर का रंगमंडप इतना विशाल है कि तीन हज़ार लोग एक साथ बैठकर चैत्यवंदन कर सकते है। एक-एक स्तंभ पर जिनबिंबों की नक्काशी भी दिखती है।)
__इसके साथ ही पेथड़शाह ने छप्पन घड़ी प्रमाण सुवर्ण देवद्रव्य में देकर इन्द्रमाला पहनी और गिरनार तीर्थ को दिगम्बरों के कब्जे में जाता हुआ बचा लिया। सिद्धगिरी पर श्री ऋषभदेव प्रभु के चैत्य को इक्कीस घड़ी सुवर्ण से मढ़कर सुवर्णमय बनवाया। इस प्रकार बहुत-सा द्रव्य धर्म कार्य में लगाया।
O) भक्ति से मिला तीर्थकर पद . उस रावण को देखिये। मंदोदरी का स्वामी, सीता का कामी, फिर भी परमात्मा जिनेश्वरदेव का अनुरागी। एक दिन मंदोदरी आदि अपनी 16 हज़ार रानियों के साथ अष्टापद पर्वत पर चढ़ा। भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित किये गए 24 तीर्थंकरों के जिन-बिंबों के समक्ष भक्ति करने हेतु मंदोदरी ने पाँव में धुंघरु बांधे और रावण हाथ में वीणा लेकर गीत-संगीत के सूर में झूमने लगा।
प्रभुभक्ति में रावण इतना मग्न हो गया था कि वीणा पर फिरती हुई अंगुलियों का भी ख्याल न रहा। एकाएक वीणा का तार टूटा और रावण चौंक उठा। यदि संगीत थम गया, तो मंदोदरी का नृत्य बिगड़ जाएगा। उसके भाव गिर जायेंगे, रंग में भंग हो जाएगा। उसने उसी क्षण अपनी जंघा चीरकर नस खींच ली। लघुलाघवी कला के बल से वह नस वीणा में जोड़ दी। ताल, सुर एवं संगीत यथावत् चालू ही रहे। ये सब कार्य इतनी तेजी से हो गये कि नृत्य करती हुई मंदोदरी को ख्याल तक न आया कि कब वीणा का तार टूटा
और कब जुड़ा? इस उत्कृष्ट भक्ति के प्रभाव से रावण ने उसी क्षण तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया और बाहर खड़े नागराज धरणेन्द्र को भी आश्चर्य में डाल दिया। काल रूपी गंगा का बहुत पानी बह जाएगा और भव परंपरा का छोर दिखने लगेगा। तब महाविदेह क्षेत्र में एक दिन ऐसा आयेगा कि राक्षसकुल शिरताज रावण तीर्थंकर बनेंगे और सीताजी उनकी गणधर बनेगी।
) सम्राट सिद्धराज और दंडनायक साजन | जीर्णोद्धार के इतिहास में अंकित हुए साजनमंत्री। पाटणनरेश सिद्धराज ने जिन्हें दंडनायक के रूप में नियुक्त किया था। एक बार उन्हें कर वसूल करने के लिये सौराष्ट्र की भूमि पर भेजा गया। वहाँ पर एक दिन वे
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