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________________ उस समय कांबली स्वीकार करने की मनाही पेथड़शाह की धर्मपत्नी को खटकने लगी। वह पेथड़शाह के पास आई और कहापेथड़शाह की धर्मपत्नी- “साधर्मिक की तरफ से मिल रही भेंट रूपी नज़राने को इन्कार करने से तीर्थंकर भगवंत की आशातना का दोष लगता है। इस बात का आपको ख्याल तो है ना?" पेथड़शाह - "हाँ!" पेथड़शाह की धर्मपत्नी - "तो फिर आप इस कांबली को स्वीकार क्यों नहीं कर रहे हो?" पेथड़शाह- "इसका कारण यह है कि हमने अभी तक ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार नहीं किया।" पेथड़शाह की धर्मपत्नी- “तो अब स्वीकार कर लेते है।" . पत्नी के शब्दों को सुनकर पेथड़शाह उसी समय अपनी पत्नी को लेकर उपाश्रय में बिराजित आचार्य भगवंत के पास पहुँच गये। 32 वर्ष की भर युवानी में आजीवन के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का अंगीकार कर लिया। धन्य है शासन की शान रूप इस युगल को! 3. मंत्रीश्वर पेथड़शाह को देवगिरि में जिनालय बनवाने के लिये जगह की आवश्यकता थी। परन्तु जैन-धर्म का द्वेषी राजा बिल्कुल तैयार नहीं था। पेथड़शाह ने बुद्धि से काम लेकर राज्यमंत्री हेमड़ के नाम से दानशाला शुरू कर दी। जिसमें प्रतिदिन हज़ारों याचकों को पाँच पकवान खिलाये जाते थे। लोगों में हेमड़ मंत्री की वाह-वाह होने लगी। निरंतर तीन वर्ष से चलने वाले इस दानशाला के बारे में जब हेमड़ को पता चला, तब उसके नाम को कौन रोशन कर रहा है? यह जानने की जिज्ञासा से स्वयं वहाँ भोजन करने बैठ गया। वहाँ संचालकों से पूछा- 'यह दानशाला कौन चलाता है ?' जवाब मिला ‘मंत्रीश्वर हेमड़।' आश्चर्य के साथ हेमड़ बोला- 'अरे! मैं स्वयं ही हेमड़ हूँ। मैंने तो कोई दानशाला नहीं खोली है।' संचालक ने हेमड़ को पेथड़शाह से मिलवाया। पेथड़शाह ने यहाँ-वहाँ की बातें करने के पश्चात् हेमड़ से कहा कि - 'यदि आपको मुझ पर प्रेम हो, तो देवगिरि में किसी शुभ स्थान पर जिनालय बनवाने के लिये मुझे जगह दीजिये। हेमड़ ने राजा को प्रसन्न कर पेथड़शाह को जगह दिलवायी। नींव खोदते ही जमीन में से मीठा जल निकला। ब्राह्मणों ने जाकर राजा के कान भरें कि सारा नगर खारा पानी पीता है और मंदिर के नींव के लिये जहाँ खुदाई की गई है, उस स्थान पर मीठा जल निकला है, अत: वहाँ मंदिर न बनवाकर बावड़ी बनवायी जाये। पेथड़शाह को इस बात का पता चलते ही रातों-रात सांदणियाँ दौड़ायी व नमक के बोरे लाकर मंदिर के गड्डे में डलवा दिये। सुबह राजा पानी की परीक्षा करने आया। एक प्याले में पानी भरकर राजा को दिया
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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