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________________ गजदंत पर्वत निकलकर मेरु को स्पर्श करते हैं। इनके बीच का क्षेत्र उत्तरकुरु है। इन दोनों कुरुक्षेत्रों में 5-5 विशाल द्रह है। सीता-सीतोदा नदी के कारण ये द्रह एवं कुरुक्षेत्र दो भागों में विभाजित हो जाते है। 5 द्रहों के दोनों तरफ 10-10 कंचनगिरि (सोने के बने हुए) पर्वत है। दोनों कुरुक्षेत्रों के मिलाकर कुल दो सौ कंचनगिरि है। देवकुरु में चित्र-विचित्र पर्वत एवं पश्चिम में 116 वृक्षों से घिरा हुआ एवं सुंदर देवभवनों एवं प्रासादों से युक्त विशाल तथा पृथ्वीकायमय शाल्मली वृक्ष है। उसी प्रकार उत्तर कुरु क्षेत्र में यमक-समक पर्वत एवं शाल्मली वृक्ष के समान जम्बू नाम का वृक्ष पूर्वाध में है। इस वृक्ष पर जम्बू द्वीप के अधिपति अनादृत देव के भवनादि है। इन जम्बू वृक्षों के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। सीतोदा समासाद बमारी वळत NETINENTRY BI FICIA -AAE AAAA मेरु पर्वत के चारों तरफ गजदंत पर्वत तक भद्रशाल वन है। इस वन की आठ दिशाओं में 8 करिकूट है। वन के अंत में चारों तरफ वेदिका है। उसके बाद विजयों की शुरुआत होती है। केशरी द्रह में से निकलने वाली सीता नदी उत्तर कुरु के मध्य में होकर मेरु पर्वत के पास से मोड़ लेकर पूर्व महाविदेह को दो भागों में बाँटती हुई पूर्व लवण समुद्र में मिलती है। इसी प्रकार सीतोदा नदी तिगिच्छिद्रह में से निकलकर देव कुरु के मध्य में से बहती हुई पश्चिम महाविदेह को दो भागों में बाँटती हुई पश्चिम लवण समुद्र में मिलती है। कुरु क्षेत्रों में से निकलते समय कुरुक्षेत्रों की 84,00084,000 नदियाँ दोनों नदियों में मिलती हैं। चित्र नं. 1 के अनुसार पूर्व महाविदेह के उत्तरार्ध में 8 विजय उत्तर-दक्षिण लम्बी है। इसके उत्तर में नीलवंत पर्वत एवं दक्षिण में सीता नदी है। इन 8 विजयों के बीच में 4 वक्षस्कार एवं 3 अन्तर्नदियाँ हैं। अर्थात् 1 विजय 1 पर्वत, 1विजय, 1नदी, 1विजय, 1पर्वत, 1विजय, 1नदी इस क्रम से 8 विजयों के 7 आंतरे में 4 पर्वत एवं 3 नदियाँ है। 8 वीं पुष्कलावती विजय में सीमंधर प्रभु विचर रहे हैं। 8 वीं विजय के बाद जगति एवं वन प्रमुख है।
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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