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इसी प्रकार पूर्व महाविदेह के दक्षिणार्ध में निषध एवं सीता नदी के बीच 9 से 16 तक की 8 विजय, 4 वक्षस्कार एवं 3 अन्तर्नदियाँ हैं। 9वीं विजय में युगमंधर परमात्मा विचर रहे हैं।
इसी प्रकार पश्चिम महाविदेह के दक्षिणार्ध में 17 से 24 तक की 8 विजय के बीच में 4 वक्षस्कार पर्वत एवं 3 अन्तर्नदियाँ है एवं उत्तरार्ध में 25 से 32 तक की 8 विजय के बीच में 4 वक्षस्कार पर्वत एवं 3 अन्तर्नदियाँ है। इनमें 24 वीं एवं 25 वीं विजय में बाहु-सुबाहु परमात्मा विचर रहे हैं।
इस प्रकार कुल मिलाकर 32 विजय, 16 वक्षस्कार एवं 12 अंतर्नदियाँ हुई। इन विजयों के छ: खण्ड भरत क्षेत्र के समान समझने चाहिए। अंतर इतना ही है कि 1 से 8 (पूर्व महाविदेह के उत्तर की आठ विजय) एवं 17 से 24 (पश्चिम महाविदेह के दक्षिण की 8 विजय) में गंगा-सिंधु नाम की नदियाँ बहती है और बाकि विजय यानि 9 से 16 एवं 25 से 32 तक की विजयों में रक्ता-रक्तवती नदियाँ बहती है एवं भरत क्षेत्र की तरह ये नदियाँ प्रत्येक विजय को 6 भाग में बाँटती हैं। महाविदेह की प्रत्येक विजय का स्पष्टीकरण
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দয়া
विजय में बहने वाली गंगा-सिंधु एवं रक्ता-रक्तावती नदियाँ यथा योग्य निषध अथवा नीलवंत पर्वत की तलेटी में रहे हुए कुंड में से निकलती है एवं सीता-सीतोदा में मिलती है।
यहाँ चित्र में चारों तरफ की एक-एक विजय के खण्ड एवं नदियाँ बताने में आयी है। इसी प्रकार अन्य विजयों के लिए समझ लेना। आगे भी धातकी खण्ड एवं पुष्करार्ध की विजयों के लिए इसी प्रकार समझना। यहाँ खास ध्यान में रखना चाहिए कि महाविदेह की प्रत्येक विजय भरत क्षेत्र से बहुत बडी है। लगभग 31 गुणा बडी है। क्योंकि भरतक्षेत्र जितने 64 खण्ड महाविदेह में है। इसमें से आधे खण्ड यानि 32 खण्ड एक विजय को मिलते हैं। एवं सीता या सीतोदा नदी मानो कि 1 खण्ड रोके तो भी भरत क्षेत्र जितने 31 खण्ड एक विजय में समा जाते हैं।