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अपनी ही प्रेमिका सुनंदा के गर्भ में उत्पन्न हुआ। सचमुच कर्म के खेल न्यारे होते हैं। एक भव का प्रेमी दूसरे ही भव में पुत्र बन गया। प्रेमिका माता बन गई। विषय भोग के स्मरण मात्र से रुपसेन का अनमोल मनुष्य भव बिगड़ गया। यहाँ अचानक महारानी यशोमती द्वारा सुनंदा के तबीयत की खबर लेने हेतु भेजे हुए दो सैनिक सुनंदा के महल में पहुँचे। उनके आने की खबर सुनते ही सुनंदा घबरा गई। उसने तुरंत ही रुपसेन (महाबल) को जाने का संकेत दिया। महाबल के लिए तो यह रात वरदान के रुप में सिद्ध हो गई। वह सुनंदा के जवाहरात लेकर वहाँ से भाग गया। इधर रुपसेन के परिवारजन ने जब रुपसेन को घर पर नहीं देखा और काफी देर इंतजार करने पर भी जब वह नहीं लौटा। तब उन्होंने राजा से रुपसेन की खोज करवाने की विनंती की। सुनंदा को जब रुपसेन के लापता होने के समाचार मिले तब उसने भी सर्वत्र रुपसेन की खोज करवाई। लेकिन अब वह मिले भी कहाँ से ? वह तो अपार वेदना सहन कर अपनी प्रियतमा की कोख में उत्पन्न हो गया है।
कुछ दिनों बाद वातावरण एकदम शान्त हो गया। सुनंदा भी अब धीरे-धीरे रुपसेन को भूलने लगी। परंतु अब एक नई तकलीफ पैदा हो गई। धीरे-धीरे सुनंदा का गर्भ बढ़ने लगा। इस बात का मात्र सुनंदा तथा उसकी प्रिय सखी कामिनी को ही पता था। सुनंदा तथा उसके माता-पिता की इज्जत को बचाने के लिए कामिनी ने उसे गर्भपात कराने की सलाह दी। पंचेन्द्रिय जीव की हत्या के महापाप को करने के लिए सुनंदा का मन तैयार नहीं हुआ। आवेश में आकर विषय सुख भोगने की गलती का उसे एहसास होने लगा। किन्तु वह निरुपाय थी। गरम औषधि लेकर सुनंदा ने गर्भ में पल रहे अपने रुप के दिवाने रुपसेन की हत्या कर दी।
सुनंदा को पाने के सपने देखने वाला रुपसेन सुनंदा के ही हाथों मारा गया। वहाँ से मरकर वह किसी वन में फणीधर नाग के रुप में उत्पन्न हुआ। कुछ दिन बाद सुनंदा को भी अब विवाह के योग्य जानकर उसके माता-पिता ने क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा के साथ उसकी शादी करवा दी। पटरानी बनी सुनंदा अब राजा के साथ आनंदमय जीवन गुजारने लगी। एक दिन राजा-रानी दोनों उद्यान में टहलने गए। संयोगवश नाग बना रुपसेन का जीव भी उसी उद्यान में पहुँच गया। सुनंदा को देखते ही पूर्व भव के वासना के संस्कार जागृत हो गए। सुनंदा को देखकर वह उसकी ओर बढ़ने लगा। इतने भयंकर नाग को अपनी ओर आते देख सुनंदा चिल्लाने लगी। उसकी चीख सुनकर राज-सेवक दौड़ कर आए तथा एक पल का भी विलंब किए बिना उस सर्प के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। बेचारा रुपसेन पुन: अपनी प्रेमिका द्वारा मारा गया। वहाँ से मरकर रुपसेन का जीव चौथे भव में कौआँ बना।
___ एक दिन राजा ने अपने उद्यान में संगीत का कार्यक्रम रखा। राजा-रानी सहित दूसरे भी सभासद वहाँ आकर उस मनमोहक वातावरण का आनंद लेने लगे। इतने में संयोगवश कौआ बना रुपसेन का जीव भी