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पान की दुकान पर जरुर आऊँगा।
तुम्हारे मिलन का इच्छुक.....रुपसेन इस प्रकार सुनंदा और रुपसेन की प्रेम-कहानी की शुरुवात हो गई। अब रुपसेन नित्य ही पान वाले की दुकान पर आता और सुनंदा भी अपने झरोखे में आकर बैठ जाती। दोनों एक दूसरे को देख कर आनंद मनाते। कुछ दिन यूं ही बीत गये। दोनों प्रेमी अब मात्र दृष्टि मिलन से अतृप्त थे। वे तो नित्य ही एक दूसरे को मिलने की चाह रखते थे। ऐसे में नगर में कौमुदी महोत्सव का दिन निकट आया। राजा की तरफ से नगर में ढिंढोरा पिटवाया गया कि वृद्ध एवं बिमार को छोड़कर सभी को कौमुदी महोत्सव में आना जरुरी है। पूरे नगर में महोत्सव की तैयारियाँ होने लगी। रुपसेन और सुनंदा को मिलन का अवसर मिल गया। पत्र व्यवहार द्वारा दोनों ने महोत्सव के दिन बिमारी का बहाना बनाकर नगर में ठहरने का निश्चय किया। कौमुदी के दिन महारानी यशोमती अपनी पुत्री सुनंदा को लेने आई। तब सुनंदा ने बिमारी का बहाना बनाकर महारानी को कौमुदी महोत्सव में भेज दिया। तथा स्वयं राजमहल में ही रही।
__यहाँ रुपसेन भी सिरदर्द का बहाना बनाकर घर पर ही रहा। महोत्सव के दिन जब नगरवासी राजभोज का आनंद ले रहे थे। तब सज-धज कर रुपसेन भी अपनी प्रियतमा को मिलने चल पड़ा। सुनंदा भी अपने प्रेमी को मिलने के लिए तरस रही थी। एक-एक पल एक-एक वर्ष के समान बीत रहे थे। सुनंदा ने पहले से ही सखियों के द्वारा झरोखे से रस्सी नीचे डलवा दी ताकि रुपसेन आराम से ऊपर आ सके। दोनों मिलन के सुनहरे सपनों में खोये हुए थे। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। कौमुदी महोत्सव में नगर के विराने का फायदा उठाकर महाबल नामक जुआरी भी अपनी निर्धनता दूर करने हेतु चोरी के लिए निकल पड़ा। घूमते-घूमते वह सुनंदा के महल के नीचे पहुँचा। उसने झरोखे से लटकती मोटी रस्सी देखी और कुतूहल वश उस रस्सी को हिलाने लगा। रस्सी के हिलते ही सुनंदा की सखियों ने समझा कि रुपसेन आ गया है। और उन्होंने उसे रस्सी से ऊपर खींच लिया। सखियों ने खण्ड के दीपक पहले से ही बुझा दिये थे। इतने में सुनंदा महाबल को रुपसेन समझकर उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी शय्या के पास ले गई। मोहान्ध बना महाबल अन्धकार का फायदा उठाकर सुनंदा के साथ विषय-भोग करने लगा। सुनंदा भी उसके समागम का आनंद लेने लगी।
बिचारा रुपसेन सोचा कुछ और हुआ कुछ। रुपसेन सुनंदा के मिलन के सुनहरे सपनों में चल रहा था और अचानक एक जीर्ण मकान की दीवार उस पर गिर पड़ी। यहाँ उसकी प्रियतमा महाबल के साथ आनंद से विषय सुख भोग रही थी और वहाँ वह स्वयं अपने जीवन के अंतिम पलों को गिन रहा था। अंतिम समय में भी सुनंदा के साथ विषय भोग करने की इच्छा के कारण रुपसेन मरकर महाबल के समागम से