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सिंह गुफावासी मुनि - वे कारण कौन-से थे? क्या आप हमें बताने की कृपा करेंगे? स्थूलिभद्र मुनि - आप सभी अपनी-अपनी कड़ी साधना की सिद्धि हेतु अपनी परीक्षा करना चाहते थे। आपने अहिंसा की साधना को सिद्ध करने के लिए सिंह की गुफा के पास चातुर्मास बिताने की अनुज्ञा मांगी। इन महात्मा ने क्रोधविजय, क्षमा भाव की सिद्धि हेतु भयानक जहरीले साँप के बिल के पास खड़े रहकर चार मास आराधना करने की अनुमति चाही और इन्होंने अपने अप्रमत्तभाव की पराकाष्ठा को पाने के लिए कुएँ की दीवार पर खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करके चातुर्मास पूरा करने की आज्ञा मांगी। तब मुझे लगा कि क्यों न मैं भी अपने ब्रह्मचर्य की साधना को उत्कृष्टतम बनाने हेतु अपनी परीक्षा करूँ और आप ही बताइयें इस हेतु मैंने जो स्थान चुना उससे उत्तम स्थान दूसरा कौन-सा हो सकता था? अन्य सहवर्ती मुनि - आपने एकदम सही फर्माया, स्थान के विषय में आपका चुनाव सही था। पर हम यह जानना चाहते है कि कोशा के यहाँ चातुर्मास करने का क्या यह एक ही कारण था या अन्य भी कोई कारण थे ? यदि अन्य कारण थे तो क्या आप वह हमें बताएँगे? स्थूलिभद्र मुनि - हाँ अन्य भी कई कारण थे जिनके लिए मैंने यह कदम उठाया। दूसरा कारण यह था कि इतने वर्षों तक हम दोनों वासना की नाली में डुबे हुए थे। साधु बनकर मैं तो बाहर आ गया। परंतु मुझे अब कोशा को भी बाहर निकालना उचित लग रहा था। अन्यथा मैं उसका विश्वासघाती कहलाता। इसके अलावा जब मैंने उसका महल छोड़ा था तब मैंने उससे वादा किया था कि मैं वापस आऊँगा। मुझे वह वादा भी निभाना था। कई लोगों की धारणा थी कि राजा और मंत्रीपद से बचने के लिए मैंने दीक्षा ली है। जब कोशा नज़र के सामने आयेगी तब मेरा सारा वैराग्य चौपट हो जाएगा और मैं वापस कोशा के साथ रंग-राग में डूब जाऊँगा । इस गलत मान्यता को दूर करना भी आवश्यक था। मुझे सभी को प्रेरणा देनी थी कि आदमी चाहे तो अपने कैसे भी दोष और वासना से मुक्त हो सकता है । जिस निमित्त को पाकर एक व्यक्ति औरों की नज़रों के सामने नीचा गिर जाता है। वह व्यक्ति यदि पुरुषार्थ करे तो उसी निमित्त पर नियंत्रण पाकर ऊँचा भी उठ सकता है। मुझे सकल विश्व के सामने इस बात की सिद्धि करनी थी। इसलिए मैंने कोशा के यहाँ चातुर्मास करने की आज्ञा मांगी। सर्प बिल वासी मुनि - कोशा के यहाँ चातुर्मास करने के पीछे आपने जो कारण, जो हेतु बताए। आप सचमुच उसमें खरे उतरे। परंतु अब मैं आपसे एक व्यक्तिगत प्रश्न करना चाहता हूँ। बाह्य दृष्टि से देखा जाए तो आप भले ही जीत गए परंतु अंतर मन से भी क्या आप उतने ही दृढ़ रहे ? क्या पूरे चातुर्मास के दौरान आपके मन में एक बार भी वासना के या ऐसे कोई भी दूसरे विचार नहीं आए?